आमतौर पर यह माना जाता है कि शहरों में ज्यादा वाहन और भीड़-भाड़ के चलते वायु प्रदूषण की समस्या ज्यादा गंभीर है. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. प्रदूषण के मामले में शहरों एवं गांवों के हालात लगभग एक जैसे हैं. आईआईटी दिल्ली एवं क्लाइमेट ट्रेंड्स के एक विश्लेषण में यह बात सामने आई है.
आईआईटी दिल्ली ने प्रदूषण की स्थिति के आकलन के लिए एक वर्ग किलोमीटर के दायरे में उपग्रह के आंकड़े एकत्र किए. इस दायरे में सूक्ष्म कणों पीएम 2.5 की मौजूदगी की जांच की गई. बाद में क्लाईमेट ट्रेंड्स के विशेषज्ञों ने इन आंकड़ों का देशव्यापी विश्लेषण किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि यह समस्या शहर ही नहीं गांवों में भी गंभीर है. हालांकि गत कुछ सालों में यह पहले की तुलना में थोड़ा कम हुआ है. विश्लेषण में मिला कि सभी क्षेत्रों में पीएम 2.5 की शहरी और ग्रामीण सघनता के बीच थोड़ा ही अंतर था. यह दर्शाता है कि दोनों आबादी स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करती हैं. अध्ययन ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों के मुकाबले वायु गुणवत्ता निगरानी की कमी पर भी प्रकाश डालता है.
प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास हों
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने शहरों से परे वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया. जहां राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनकैप) को लागू करने वाले राज्यों में प्रगति देखी गई है, वहीं महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों ने बहुत कम प्रगति की है.
पीएम 2.5 में कमी पर जोर
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में प्रोफेसर, एस एन त्रिपाठी ने 2017 से 2022 तक पीएम 2.5 के स्तर में समग्र कमी के महत्व पर जोर दिया.
वायु प्रदूषण सिर्फ शहर की समस्या नहीं हैं. ग्रामीण क्षेत्र भी इससे समान रूप से प्रभावित हैं. परिस्थितियों के अनुरूप रोकथाम और शमन उपायों को तलाशना जरूरी है. – डॉ. अरुण शर्मा, निदेशक, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन एनवायर्नमेंटल हेल्थ, जोधपुर
आईआईटी दिल्ली एवं क्लाइमेट ट्रेंड्स के अध्ययन में खुलासा, दोनों क्षेत्रों की आबादी को करना पड़ता है स्वास्थ्य जोखिमों का सामना