
कंजंक्टिवाइटिस को पिंक आई यानी गुलाबी आंख के रूप में जाना जाता है. इसके तहत आंख की उस झिल्ली में संक्रमण होता है, जो आंख को ढक कर रखती है. इसे आई फ्लू भी कहते हैं, जो धूल कण, एलर्जी, बैक्टीरिया या वायरस जैसे संक्रामक एजेंट के संपर्क में आने से होता है. जिसके कारण आंखों के सफेद हिस्से में संक्रमण तेजी से फैलता है. एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस संक्रामक नहीं होता है. वहीं वायरस जनित तेजी से दूसरों में फैलता है. खुजली, लालिमा और आंख से चिपचिपा तरल निकलना इसके शुरुआती लक्षण हैं. संक्रमण गंभीर होने से आंखों में सूजन, दर्द व हल्के बुखार के लक्षण भी देखने को मिलते हैं.
●खुद से दवा न करें डॉक्टर द्वारा निर्धारित न की गई कोई भी अन्य चीज आंखों में न डालें. डॉक्टर द्वारा बताए गए आई ड्रॉप ही डालें. कुछ लोग स्वयं से स्टेरॉएड्स युक्त आई ड्रॉप ले लेते हैं, जो सही नहीं.
●आंखों को रगड़ने से बचें आंखों को अनावश्यक छूएं नहीं. आंखों को बार-बार रगड़ना और गंदे हाथों से छूना दर्द को बढ़ा देता है.
●तौलिया व मेकअप प्रोडक्ट संक्रमित व्यक्ति की चीजें शेयर न करें.
●कॉन्टैक्ट लेंस की सफाई संक्रमण के दौरान लैंस न पहनें.
●व्यक्तिगत साफ-सफाई हाथों को साबुन और पानी से हर थोड़े अंतराल पर धोते रहें. किसी भी संक्रमण से बचने का यह प्रभावी तरीका है.
●गर्म सिकाई करें आंखों में दर्द है और लगातार पपड़ी बन रही है तो सुबह उठने पर बंद आंख पर गर्म सिकाई करें. दिन-भर में ठंडी-गर्म सेंक भी ले सकते हैं.
आई ड्रॉप डालते समय सावधानी बरतें
आई ड्रॉप सिर को पीछे की ओर रखकर डालें. ताकि निर्धारित मात्रा आंखों में चली जाए
●बोतल की नोक न छुएं. बोतल आंखों या पलकों के संपर्क में न आए.
●संक्रमण गंभीर है तो सामान्य आई ड्रॉप की जगह डॉक्टर द्वारा बताई दवा डालें.
●संक्रमण लगातार बढ़ रहा है तो उचित डायग्नोसिस और इलाज के लिए किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ से कंसल्ट करें.
●कृत्रिम आंसू का उपयोग करें आंखों को चिकनाई देने वाली आई ड्रॉप आमतौर पर कंजंक्टिवाइटिस से जुड़ी जलन और सूखापन से राहत देती हैं. आई ड्राप ऐसा चुनें, जिसमें किसी तरह का प्रीजर्वेटिव का इस्तेमाल न किया गया हो.