जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना आज पूरी दुनिया कर रही है और इस संकट से निपटने के उपाय भी किए जा रहे हैं. पर एक नए अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि करीब नौ लाख वर्ष पहले जलवायु परिवर्तन के कारण धरती पर इंसान का अस्तित्व खतरे में पड़ गया था. वे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए थे. यह शोध साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
शोध के अनुसार दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिकों ने मौजूदा इंसानों के आनुवांशिक आंकड़ों के आधार पर एक जीन वृक्ष तैयार किया और इसके जरिये प्राचीन जनसंख्या की गतिशीलता का पुनर्निर्माण किया. यह जानने की कोशिश की गई कि आठ-दस लाख साल पहले धरती पर क्या हुआ. इसके अनुसार 98.7 फीसदी इंसानों का अस्तित्व तब खत्म हो गया था. शोध के अनुसार करीब नौ लाख साल पहले तब के मानव आज के मानव से थोड़ा भिन्न थे. हालांकि, यह प्रजाति मानव के समान ही थी.
महज 1280 रह गई थी आबादी शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण वे धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए थे. अफ्रीका महाद्वीप में ही तब उनकी आबादी शेष बची थी, जो महज 1280 तक सीमित रह गई. वैज्ञानिक इसके लिए जलवायु के कारण उत्पन्न हुई आनुवांशिक बाधाओं को जिम्मेदार मानते हैं. उसके बाद करीब 1.17 लाख साल तक आबादी में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई पर उसके बाद इसमें वृद्धि हुई.
बाद में फिर बढ़ने लगी आबादी
शोध के अनुसार लगभग 8.13 लाख साल पहले पूर्व मानव आबादी फिर से बढ़ने लगी. शेडोंग फर्स्ट मेडिकल यूनिवर्सिटी और जिनान में शेडोंग एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के जनसंख्या आनुवंशिकीविद और पेपर के सह-लेखक जिकियान हाओ कहते हैं, हमारे पूर्वज कैसे जीवित रहने में कामयाब रहे, और किस चीज ने उन्हें एक बार फिर से पनपने की अनुमति दी, यह स्पष्ट नहीं हो सका है.
इलिनोइस विश्वविद्यालय के मानवविज्ञानी स्टेनली एम्ब्रोस ने कहा, यह अवधि प्रारंभिक-मध्य प्लेइस्टोसिन संक्रमण काल का हिस्सा थी. कठोर जलवायु परिवर्तन के चलते अफ्रीका में हिमनद चक्र लंबे और अधिक तीव्र हो गए थे. इसके कारण लंबे समय तक सूखा पड़ा. अनुमान है कि बदलती जलवायु ने मानव को खत्म कर दिया होगा और एक लंबे समय के बाद नई मानव प्रजातियों को उभरने के लिए मजबूर किया होगा. अंतत ये आधुनिक मनुष्यों और हमारे विलुप्त रिश्तेदारों, डेनिसोवन्स और निएंडरथल के अंतिम सामान्य पूर्वज के रूप में विकसित हुए होंगे.