
मोबाइल फोन भले ही अब जीवन का जरूरी हिस्सा बन चुका है, लेकिन यह लोगों की नींद भी बिगाड़ रहा है. एक नए अध्ययन में पाया गया कि मोबाइल फोन का इस्तेमाल जितना अधिक होगा, नींद भी उतनी खराब होगी.
एम्स दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ़ के विशेषज्ञों ने यह अध्ययन किया है, जो इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित हुआ है. उत्तर भारत के दो केंद्रों पर 566 लोगों पर यह अध्ययन किया गया. इनमें से 345 लोग ऐसे थे, जो मोबाइल फोन का रोजाना 29 मिनट या इससे कम इस्तेमाल करते थे. जबकि, 221 लोग करीब 49 मिनट या इससे अधिक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते थे. इन लोगों का पिट्सबर्ग स्लिप क्वालिटी इंडेक्स (पीएसक्यूआई) तैयार किया गया. इसके लिए 96 लोगों की एक्टग्राफी व 95 की पॉलीसोम्नोग्राफी भी की गई. इनके जरिए नींद की अवधि और गुणवत्ता को मापा जाता है.
अध्ययन के नतीजे में पाया गया कि 438 लोगों का पीएसक्यूआई स्कोर पांच से नीचे था, जबकि 128 यानी करीब 23 फीसदी का पांच से ज्यादा था. मगर, मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले 221 लोगों में से 63 लोग यानी 29 फीसदी ऐसे थे, जिनका पीएसक्यूआई स्कोर पांच से अधिक था. जबकि, कम इस्तेमाल करने वाले 345 लोगों में 65 लोग यानी 19 फीसदी ऐसे थे, जिनका पीएसक्यूआई पांच से अधिक था. इससे पता चला कि मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल नींद को प्रभावित करता है. पीएसक्यूआई ज्यादा होने का मतलब नींद की गुणवत्ता अच्छी नहीं है.
पांच सालों में किया अध्ययन
अध्ययन के मुताबिक, मोबाइल फोन का कम इस्तेमाल करने वाले करीब 69 फीसदी लोगों में नींद की गुणवत्ता बहुत अच्छी पाई गई. जबकि, मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले समूह में महज 31 फीसदी लोगों को ही अच्छी नींद आई. इसी तरह मोबाइल फोन का कम इस्तेमाल करने वाले 64 फीसदी लोगों को रोजाना सात घंटे या इससे अधिक नींद आई. जबकि, मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले 36 फीसदी लोग ही सात घंटे या इससे अधिक सो पाए.
लोगों पर उत्तर भारत के दो केंद्रों पर हुए अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने निकाला निष्कर्ष
अध्ययन में मोबाइल फोन के इस्तेमाल की कुल अवधि और नींद की कुल अवधि के साथ उसके स्तरों जैसे हल्की नींद, कम गहरी नींद और गहरी नींद को अलग-अलग भागों में रखकर भी परखा गया. अध्ययन की अवधि जुलाई 2014 से सितंबर 2019 के बीच की है.