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इंटरनेट की लत युवाओं को मनोरोगी बना रही

भारत में इंटरनेट की सस्ती उपलब्धता जहां लोगों के जीवन को आसान बना रही है. वहीं, युवाओं एवं किशोरों में यह आधुनिक किस्म के मनोरोग बिहेवियरल एडिक्शन (बीए) यानी व्यावहारिक लत को भी बढ़ावा दे रही है.

नतीजा यह है कि आज देश में करीब 33 फीसदी युवाओं के इस लत की चपेट में होने का अनुमान है. जिस तेजी से देश में इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है, उससे आने वाले समय में यह चुनौती और गंभीर रूप धारण कर सकती है. जेएसएस मेडिकल कॉलेज मैसुरू के क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट मनोज के पांडे और उनके सहयोगी सुभाष दास का शोधपत्र इस बाबत इंडियन जर्नल ऑफ सोशल साइकेट्री में प्रकाशित हुआ है.

शिक्षा मंत्रालय ने स्क्रीन के इस्तेमाल को लेकर छात्रों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. केरल पहला राज्य होगा, जो डिजिटल डि एडिक्शन को लेकर अपना कार्यक्रम शुरू करेगा. इस चुनौती से निपटने के लिए अनुसंधान की जरूरत है.

नशीले पदार्थों के सेवन की तरह उभर रही यह समस्या

रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस समस्या को नशीले पदार्थों, अल्कोहल जैसी समस्याओं की भांति गंभीरता से लेना शुरू किया है. इससे निपटने की रणनीतियों पर कार्य चल रहा है. जहां तक भारत का प्रश्न है तो कुछ पहल बड़े अस्पतालों में हुई है. जैसे एम्स दिल्ली ने ऐसे मामलों के लिए बिहेवेरियल रिसौर्स हब की शुरुआत की है. निम्हंस बेंगलुरू में शट क्लिनिक के जरिये उपचार किया जा रहा है. इसी प्रकार स्वास्थ्य मंत्रालय की टेली मेंटल हेल्थ योजना भी अच्छी पहल है.

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