देहरादून. पहाड़ सैलानियों को तो आकर्षित करते हैं लेकिन वहां का जीवन इतना सरल नहीं होता, जितना मैदानी इलाकों का. बात बच्चों की हो तो यह और कठिनाई भरा हो जाता है. स्कूल जाने से लेकर खेलकूद के वक्त तक में जंगली जानवरों का भय तो होता ही है, साफ पेयजल तक पहाड़ों पर मयस्सर नहीं होता.
ऐसे ही बच्चों की कहानी को फिल्म फूली में पिरोया गया है. इसके माध्यम से आप उनके संघर्षों से रू-ब-रू हो सकेंगे. पहाड़ के संघर्षशील बच्चों के जीवन को दर्शाती फिल्म की कहानी एक बच्ची ‘फूली’ को केंद्रित करते हुए बुनी गई है. ‘फूली’ ऐसी बच्ची की कहानी है, जिसकी मां का निधन हो चुका है. पिता शराब पीने के आदी हैं और उसे स्कूल नहीं भेजते. इस बीच एक जादूगर ‘फूली’ के जीवन में उम्मीद जगाता है. घर-खेत के काम, जंगल से लकड़ी लाने जैसे कामों के साथ ‘फूली’ कैसे अपनी मंजिल हासिल करती है, इस जद्दोजहद को फिल्म में दर्शाया गया है. निर्माता निर्देशक अविनाश ध्यानी की फिल्म की शूटिंग पौड़ी की डबरालस्यूं पट्टी में हुई है.
बच्चों ने किया अभिनय
ध्यानी ने बताया कि मुख्य किरदारों की भूमिका भी गांव के बच्चों ने ही निभाई है. फिल्म की पूरी शूटिंग छह महीने तक पौड़ी के तिमली, डाबर, डंगला, देवीखेत, ढौंरी आदि गांवों में हुई. मुख्य किरदार गांव की बेटी रिया बलूनी ने निभाया है, जो देवीखेत इंटर कॉलेज में ही पढ़ती है. इसके साथ ही प्रिंस जुयाल, निधि बलूनी, अंकिता, सलोनी, आयुषी डबराल, साहिल, पंकज, नरोत्तम, अरुण, भगत सिंह गुसाईं, अवनीश डबराल ने भी भूमिका निभाई है.
बच्चों की वर्कशॉप कराई
ध्यानी के मुताबिक, बच्चों का मामूली ऑडिशन लिया गया, इसके बाद दो तीन दिन की एक्टिंग वर्कशॉप के बाद सभी बच्चे मंझे हुए कलाकार की तरह सामने आए. पहाड़ के बच्चों का संघर्ष उन्हीं के अभिनय के जरिए बयां करनी वाली फिल्म ‘फूली’ सात जून को रिलीज हो रही है.