
नई दिल्ली: शेयर मार्केट में चुपचाप एक बड़ा बदलाव हो रहा है. NSE के आंकड़ों के मुताबिक Nifty50 कंपनियों के प्रमोटर्स तेजी से अपनी हिस्सेदारी बेच रहे हैं. इस तरह की तेजी पहले कभी नहीं दिखी थी. दिसंबर तिमाही में उनकी हिस्सेदारी घटकर 22 साल के निचले स्तर 41.1% पर आ गई है. यह गिरावट पिछली तिमाही से 96 बेसिस पॉइंट और पिछली तीन तिमाहियों में 167 बीपीएस है. यह निवेशकों के लिए चिंता का विषय है. प्रमोटर्स ने उस समय शेयर बेचे जब बाजार अपने उच्चतम स्तर पर था. बाजार में गिरावट से पहले ही उन्होंने अपना मुनाफा निकाल लिया.
हालांकि यह सबकुछ अचानक नहीं हुआ है. साल 2009 से ही प्रमोटर्स की हिस्सेदारी घट रही है. 2019 से 2021 के बीच थोड़ी बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन फिर से गिरावट शुरू हो गई. पिछले कुछ साल में बाजार अच्छा प्रदर्शन कर रहा था. कंपनियों के अच्छे मुनाफे, बाजार में पैसा और निवेशकों का भरोसा बढ़ा था जिससे शेयर की कीमतें बढ़ीं. लेकिन जब कंपनी के प्रमोटर कीमत के उच्चतम स्तर पर पहुंचने की सूरत में शेयर बेचते हैं तो यह चेतावनी का संकेत देता है.
निवेशकों पर क्या असर होता है?
ACE इक्विटी के आंकड़ों के अनुसार भारत की कुछ बड़ी कंपनियों के प्रमोटर्स ने अपनी हिस्सेदारी तेजी से कम की है. सिप्ला और टाटा मोटर्स में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई. पिछली तीन तिमाहियों में सिप्ला की प्रमोटर होल्डिंग 428 बीपीएस गिर गई जबकि टाटा मोटर्स में 379 बीपीएस की गिरावट आई. भारती एयरटेल, महिंद्रा एंड महिंद्रा और TCS में भी यही ट्रेंड दिखा. यह दर्शाता है कि कंपनियों के प्रमोटर्स की सोच में एक बड़ा बदलाव आ रहा है.
प्रमोटर्स को अपने बिजनस की सबसे अच्छी जानकारी होती है. वे शेयर तभी बेचते हैं जब उन्हें लगता है कि आगे ज्यादा फायदा नहीं होगा. जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजिस्ट डॉ. वी के विजयकुमार ने बताया कि प्रमोटर होल्डिंग में गिरावट निश्चित रूप से एक खतरे का संकेत है. अंदरूनी लोगों की बिक्री बाजार के नजरिए से हमेशा महत्वपूर्ण होती है. वित्त वर्ष 2025 में Nifty 50 की कमाई में केवल 7% की वृद्धि होने की उम्मीद है. यह पिछली कुछ तिमाहियों के दौरान मौजूद उच्च मूल्यांकन को सही नहीं ठहराता है. प्रमोटर्स घटते लाभ के रुझानों को जानते हैं. यही कारण है कि उन्होंने हाई वैल्यूएशन के दौरान शेयर बेचे जो सही फैसला था.
कौन खरीद रहा है शेयर
हालांकि कुछ मामलों में प्रमोटर्स की बिक्री रणनीतिक हो सकती है. यह रेगुलेटरी जरूरतों या कर्ज में कमी के कारण हो सकती है. रिटेल इनवेस्टर्स को किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले इन कारणों को गहराई से समझना चाहिए. एक्सिस सिक्योरिटीज PMS के फंड मैनेजर नीरज गौड़ ने बताया कि प्रमोटर्स कई कारणों से शेयर बेच सकते हैं. इनमें न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों का अनुपालन, कर्ज में कमी या व्यक्तिगत वित्तीय आवश्यकताएं शामिल हैं.
जैसे-जैसे प्रमोटर्स अपनी हिस्सेदारी कम कर रहे हैं, संस्थागत निवेशक आगे आ रहे हैं. दिसंबर तिमाही में Nifty50 कंपनियों में संस्थागत स्वामित्व 47.5% के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया. इसका मुख्य कारण घरेलू म्यूचुअल फंड हैं जिन्होंने लगातार छठी तिमाही में अपनी होल्डिंग बढ़ाई है. अब वे Nifty50 के 12.2% के मालिक हैं. इस बीच, व्यक्तिगत निवेशकों का हिस्सा स्थिर रहा है, जो छह वर्षों से 8-8.5% के बीच बना हुआ है.