
वैष्णव नगरी के मंदिरों खासकर मधुर उपासना के मंदिरों में ऋतुओं के अनुसार भगवान की दिनचर्या में परिवर्तन हो जाता है. उसी तरह से आहार-विहार और वस्त्र-विन्यास भी बदल जाते हैं. उसी तरह से मंदिर में भी व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं.
इस विषय पर धार्मिक न्यास समिति की ओर से सुझाव श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ को दिए गए हैं. तीर्थ क्षेत्र इस पर मंथन कर रहा है. तीर्थ क्षेत्र अभी तक इसके निर्णय का अधिकार मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास शास्त्री को सौंप रखा था. अब वह नहीं है तो पूर्ण नियंत्रण तीर्थ क्षेत्र का ही है. ग्रीष्म ऋतु से परिवर्तन की शुरुआत होगी.
रामनवमी से रामलला को ऊनी परिधान की बजाय विशुद्ध सूती परिधान ही धारण कराए जा रहे हैं. इसके अलावा भगवान के भोग में दही और मौसमी फलों के जूस को शामिल कर लिया गया है. राम मंदिर निर्माण प्रभारी गोपाल राव की मानें तो अयोध्या की रामानंदीय परम्परा के अनुसार भगवान की दिनचर्या नियत है और उसके अनुसार ही आगे भी चलता रहेगा.
उन्होंने कहा कि जहां ऋतु के अनुरूप व्यवस्थाओं का सवाल है, उससे किसी को कोई ऐतराज भी नहीं है. फिर भी भारतीय परम्परा में छह ऋतुएं हैं. चैत्र-वैसाख को वसंत ऋतु के रूप में स्वीकार किया गया है. इस ऋतु में प्रकृति में परिवर्तन आता है और इसके बाद ज्येष्ठ-आषाढ मास को ग्रीष्म ऋतु माना गया है. उन्होंने बताया कि मंदिर में भगवान की दिनचर्या का परिवर्तन ग्रीष्म ऋतु यानी ज्येष्ठ मास के आरम्भ से दिखाई देने लगेगा. पंचांगों के अनुसार 12 मई को बैसाख पूर्णिमा के बाद 13 मई से ज्येष्ठ मास शुरू हो जाएगा.
गर्मी के लिहाज से भगवान का मुकुट-कुंडल और हार भी बदल जाएगा: रामनवमी के पर्व पर भगवान रामलला को विशिष्ट स्वर्णाभूषणों से अलंकृत किया गया था. इस पर्व के बाद उनके कुछ विशिष्ट अलंकरणों को हटा दिया गया. इस समय रामलला को जितने आभूषण धारण कराए गए हैं, वह भी मौसम के अनुकूल नहीं है. बताया गया कि इन आभूषणों को ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में हटाकर हल्के आभूषण धारण कराए जाएंगे. रामलला के शीर्ष पर मुकुट और कुंडल शोभायमान है.
भगवान को प्रतिदिन मधुपर्क का कराया जाता है पान: भगवान रामलला को प्रतिदिन पांचों आरती से ठीक पहले मधुपर्क का पान कराया जाता है. इस मधुपर्क का तात्पर्य है कि शहद, दही और घी का मिश्रण. मुख्य रूप से भगवान की मुख शुद्धि के लिए प्रथम इस मधुपर्क के पान कराने की परम्परा वैष्णव विधान में है. बताया जाता है कि भोर में भगवान के उत्थापन के बाद मंगला आरती के समय और फिर शृंगार आरती के पहले दिया जाता है.