गुजरात (Gujrat) हाई कोर्ट ने मोरबी पुल (Morbi bridge) हादसे पर स्वत: संज्ञान ली गई जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की. इस दौरान अदालत ने टेंडर जारी करने में पाई गईं खामियों को लेकर राज्य सरकार और मोरबी नगर निगम को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि मोरबी नगर पालिका को होशियारी दिखाने की जरूरत नहीं है.
चीफ जस्टिस अरविंद कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने सवाल किया, ’15 जून 2016 को कॉन्ट्रैक्टर का टर्म समाप्त हो जाने के बाद भी नया टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया? बिना टेंडर के एक व्यक्ति के प्रति राज्य की ओर से कितनी उदारता दिखाई गई? अदालत ने कहा कि राज्य को उन कारणों को बताना चाहिए कि आखिर क्यों नगर निकाय के मुख्य अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की गई?
मोरबी पुल हादसे में 135 लोगों की जान चली गई थी और कई लोग ज़ख़्मी हो गए थे. इसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर ख़ुद नोटिस लिया था और छह महकमों से जवाब तलब किया था. चीफ जस्सटिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं.
मोरबी नगर पालिका ने ओरेवा ग्रुप को 15 साल का ठेका दिया था, जो कि अजंता ब्रांड की वॉल क्लॉक के लिए जाना जाता है. इस लापरवाही पर अदालत ने कहा कि नगर पालिका जो एक सरकारी निकाय है, उसने चूक की है, जिसने 135 लोगों को मार डाला. क्या गुजरात नगर पालिका ने अधिनियम, 1963 की पासदारी की थी.
अब तक इस मामले में कॉन्ट्रैक्ट लेने वाली कंपनी के कुछ कर्मचारियों को ही गिरफ्तार किया गया है, जबकि उच्च प्रशासन को, जिसने 7 करोड़ के समझौते पर दस्तखत किए हैं, कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा है. इसी के साथ अभी तक किसी भी अफ़सर को पुल के रिनोवेशन से पहले फिर से खोलने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. अदालत ने पहले दिन से कॉन्ट्रैक्ट की फाइलें सीलबंद लिफाफे में जमा करने को भी कहा.
सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को मोरबी पुल गिरने की घटना की जांच के लिए एक न्यायिक कमीशन के बनाने की मांग वाली PIL पर सुनवाई के लिए राज़ी हो गया है. CJI डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने PIL दाखिल करने वाले वकील विशाल तिवारी की इस दलील पर गौर किया कि मामले की फौरन सुनवाई की ज़रूरत है.