नई दिल्ली . डॉक्टरों का कहना है कि डेंगू में प्लेटलेट्स की संख्या से अधिक शॉक सिंड्रोम ज्यादा जानलेवा है. ऐसे में मरीजों के लिए यह जानना ज्यादा जरूरी है कि वे बिना डॉक्टर को दिखाए फैंसी दवाओं के पीछे न भागें. इस बीमारी में आराम और तरल पदार्थ ज्यादा जरूरी है.
एम्स के मेडिसिन विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉक्टर नीरज निश्चल ने बताया कि डेंगू में मरीज की प्लेटलेट्स की संख्या पर निगरानी से ज्यादा जरूरी हेमेटोक्रिट और ब्लडप्रेशर की निगरानी है. प्लाज्मा लीक होना जानलेवा हो सकता है.
हेमेटोक्रिट रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की मात्रा का प्रतिशत है. पुरुषों के लिए यह 45 फीसदी और महिलाओं के लिए 40 फीसदी होता है. हेमेटोक्रिट बढ़ना यह बताता है कि कैपिलरी से खून में मौजूद प्लाज्मा का रिसाव होने लगा है. कैपिलरी वे रक्तवाहिनियां होती हैं, जिनकी दीवार डेंगू में अधिक छिद्रदार हो जाती है. इस कारण खून का द्रव (प्लाज्मा) रिसकर शरीर में ही आसपास जमा होने लगता है.
प्लेटलेट्स बढ़ना काफी नहीं
डेंगू के इलाज का मतलब केवल प्लेटलेट्स बढ़ाना नहीं है. जान तभी बचेगी, जब मरीज का रक्तवाहिनियों में लीक ठीक होगा. मच्छर के काटे जाने के तीन से पांच दिनों बाद डेंगू बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं. डेंगू में शॉक सिंड्रोम ज्यादा जानलेवा होता है.
ये हैं लक्षण
डेंगू के लक्षणों में तेज बुखार के साथ पेट दर्द, उल्टी आना, भूख नहीं लगना, पेशाब कम होना आदि शामिल हैं. इसके अलावा शरीर के किसी हिस्से में रक्तस्राव, शरीर पर लाल रेशेज और मरीज का शॉक में जाना गंभीर लक्षण होते हैं.
क्या है शॉक सिंड्रोम
एम्स के मेडिसिन विभाग के एडिशनल प्रोफेसर नीरज निश्चल के मुताबिक, शॉक सिंड्रोम में डेंगू का मरीज बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद त्वचा ठंडी महसूस होती है. मरीज धीरे- धीरे होश खोने लगता है. नाड़ी कभी तेज तो कभी धीरे चलती है. रक्तचाप एकदम कम हो जाता है. इससे मरीज शॉक में चला जाता है और महत्वपूर्ण अंगों में रक्त संचार कम हो जाता है.