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भारत करेगा दुनिया पर राज…पीएम नरेंद्र मोदी के इस ‘हनुमान’ से अमेरिका-चीन क्या पीछे छूट जाएंगे?

नई दिल्ली: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इतिहास एक मिथक से शुरू होता है। कई आधुनिक एआई सिस्टम की तरह यह भी रक्षा से संबंधित है। ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार टैलोस कांस्य से बना एक विशाल ऑटोमेशन था, जिसे भगवान हेफेस्टस ने क्रेते द्वीप की रक्षा के लिए बनाया था। यह वहां से गुजरने वाले जहाजों पर पत्थर फेंकने वालों से बचाता था। इसी तरह का एक फर्जी ‘तुर्क’ बनाया गया था, जो शतरंज खेलने वाला एक मशीनी उपकरण था। इसे वोल्फगैंग वॉन कैंपेलेन ने 1769 में ऑस्ट्रिया की महारानी मारिया थेरेसा को प्रभावित करने के लिए बनाया था। तुर्क ने नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ भी खेला और जीता। लेकिन वास्तव में यह एक धोखा था।

दरअसल, उस वक्त एक मानव शतरंज मास्टर मशीन के अंदर बैठा था, जो इसे काबू कर रहा था। 1830 के दशक में चार्ल्स बैबेज ने एनालिटिकल इंजन के लिए एक डिजाइन बनाया था। इसके आखिर 153 साल बाद AI का अवतार हुआ। बेशक यह AI मशीन के लिए डिजाइन नहीं था, लेकिन आज इसे डिजिटल कंप्यूटर का अग्रदूत माना जाता है। जानते हैं AI कीी इसी कहानी के बारे में, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरा जोर है।

क्या है AI, कहां होता है इसका इस्तेमाल

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता कंप्यूटरों को इंसानों जैसी सोचने और काम करने में सक्षम बनाने की तकनीक है। यह कंप्यूटर विज्ञान का एक उभरता हुआ क्षेत्र है। AI गणित, सांख्यिकी, संज्ञानात्मक विज्ञान और कंप्यूटिंग को जोड़ता है। AI बड़े आंकड़ों और हाईटेक कंप्यूटरों का इस्तेमाल करता है। यह मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग पर आधारित है। AI वर्चुअल असिस्टेंट, चैटबॉट, इमेज क्लासिफिकेशन, फेशियल रिकाग्निशन, ऑब्जेक्ट रिकाग्निशन, स्पीच रिकाग्निशन और मशीन ट्रांसलेशन में इस्तेमाल किया जाता है।

भारत जैसे देशों में 60 फीसदी कंपनियों के पास AI प्रोजेक्ट

एक रिपोर्ट में बीते साल कहा गया था कि भारत, सिंगापुर, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे अग्रणी देशों में 60 फीसदी कंपनियों के पास एआई परियोजनाएं चल रही हैं या पायलट चरण में हैं। वहीं, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी, जापान जैसे एआई-पिछड़े देशों में केवल 36 प्रतिशत कंपनियों ने इसी तरह की एआई पहल शुरू की है।

भारत को AI का हब क्यों बनाना चाहते हैं पीएम मोदी

गूगल ने बीते साल एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें यह अनुमान लगाया गया था कि 2030 तक भारत में एआई को अपनाने से कम से कम 33.8 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है। दरअसल, पीएम मोदी खुद भी भारत को एआई के क्षेत्र में अगुवा बनाने चाहते हैं। इसे भारत के लिए संकटमोचक यानी हनुमान माना जा रहा है, जो हर समस्याओं को सुलझाएगा। मोदी जानते हैं कि आने वाला वक्त एआई का है, इसीलिए वह भारत को इसका अगुवा बनाना चाहते हैं।

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