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चीन में मोदी-जिनपिंग की मुलाकात पर क्यों होगी ट्रंप की नजर, SCO समिट का एजेंडा क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान दौरे के बाद अब चीन के तियानजिन पहुंच चुके हैं. वे रविवार को तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में हिस्सा लेंगे. इस दौरान PM मोदी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति पुतिन और अन्य नेताओं से भी मुलाकात करेंगे. PM मोदी ने कहा कि उनकी यात्रा भारत के राष्ट्रीय हितों के साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक शांति, सुरक्षा और विकास को मजबूत करेगी.

मोदी 2018 के बाद पहली बार चीन की यात्रा करेंगे. SCO समिट पर अमेरिका की भी नजर रहेगी. ट्रंप की ओर से भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाने के बाद भारत, चीन और यूरेशिया के अन्य देशों के साथ यहां मजबूत पार्टनरशिप तलाश कर सकता है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि दुनियाभर में ट्रंप की टैरिफ धमकी के बीच SCO समिट चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए एक मंच के तौर पर काम करेगा. इससे वह चीन को ऐसे देश के तौर पर पेश कर सकेंगे जो ग्लोब साउथ को एकजुट करने के लिए काम करेगा. SCO के सदस्य देशों में दुनिया की 43% जनसंख्या रहती है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में इनका हिस्सा 23% है.

समिट में कितने देश शामिल हो रहे

समिट 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीनी शहर तियानजिन में होगी, जिसमें 20 से अधिक विदेशी नेता और 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख शामिल होंगे. भारत के मोदी के अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको, कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट तोकायेव, उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्ज़ियोयेव, क्रिगिज राष्ट्रपति सदिर जापारोव और ताजिक राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन.

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तय्यिप एर्दोआन, म्यांमार के सैन्य प्रमुख मिन आंग हलिंग, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो , मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू सहित अन्य नेताओं के शामिल होने की संभावना है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) के महासचिव काओ किम होर्न भी समिट में शामिल होंगे.

SCO की स्थापना कब और क्यों हुई थी

SCO की शुरुआत 1996 में एक सुरक्षा समूह के रूप में हुई थी , जिसे शंघाई फाइव कहा जाता था. कोल्ड वॉर खत्म होने और और सोवियत यूनियन के टूटने के बाद अपने सीमा विवादों को सुलझाने के लिए चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने इसका गठन किया था. 2017 में संगठन का विस्तार हुआ और इसमें भारत और पाकिस्तान शामिल हुए.

2023 में ईरान और 2024 में बेलारूस को भी मेंबरशिप मिली. इसके अलावा संगठन के 14 प्रमुख डायलॉग पार्टनर्स हैं, जिनमें सऊदी अरब, मिस्र, तुर्की, म्यांमार, श्रीलंका और कंबोडिया शामिल हैं.

समिट अहम क्यों है

समिट ऐसे समय हो रही है जब रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास जंग जारी है. दक्षिण एशिया और एशिया प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा तनाव बना हुआ है और ट्रंप ने ग्लोबल ट्रेड वॉर छेड़ दी है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका लगभग हर देश के साथ अपने संबंध खराब कर रहा है. ऐसे में चीनी राष्ट्रपति के लिए खुद को ग्लोबल पावर के तौर पर स्थापित करने का एक अच्छा समय है.

SCO समिट खत्म होने के बाद 3 सितंबर को बीजिंग में विशाल सैन्य परेड होनी है. PM मोदी इसमें शामिल नहीं होंगे. लेकिन SCO समिट में आ रहे पुतिन, लुकाशेंको और सुबियांटो परेड के लिए वहीं रुकेंगे, किम उन जोंग भी इसमें शामिल होने चीन आ सकते हैं.

अहम मुद्दों पर SCO का क्या स्टैंड है

यह ग्रुप अहम जियो-पॉलिटिकल मुद्दों पर एक राय नहीं बना पाता. देखा जाए तो यूक्रेन में चल रहे युद्ध को लेकर रूस अधिकांश SCO मेंबर्स को अपने हितों के साथ जोड़ने में सफल रहा है. हालांकि भारत ने हमेशा इस मुद्दे पर संतुलित रूख अपनाया है. भारत ने जंग खत्म करने की मांग करते हुए रूस से बड़ी मात्रा में तेल भी खरीदा है, जो अभी भी जारी है.

यूक्रेनी विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को मांग की कि SCO के सदस्य देश जंग के मुद्दे अपनी स्थिति स्पष्ट करें. यूक्रेन ने पूछा है कि क्या SCO देश अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों का सम्मान करते हैं. यही नहीं गाजा में इजराइल के युद्ध और लेबनान और ईरान में सैन्य हमलों पर भी SCO के देश बंटे हुए हैं.

SCO ने पिछले साल ईरान पर इजराइली हमले की निंदा की थी, लेकिन भारत ने SCO के जॉइंट स्टेटमेंट का समर्थन करने से इनकार कर दिया था. भारत का SCO के सदस्य पाकिस्तान के साथ भी तनाव बना हुआ है. भारत ने पहलगाम हमले के पीछे इस्लामाबाद का हाथ होने का आरोप लगाया है, जिसे पाकिस्तान ने खारिज कर दिया है.

SCO समिट को अमेरिका कैसे देखेगा

ट्रंप ग्लोबल साउथ के संगठनों के आलोचक रहे हैं. वे पहले ही ब्रिक्स पर टैरिफ लगाकर उसे कमजोर करने की धमकी दे चुके हैं. SCO पर अमेरिका की पैनी नजर रहेगी और यह इस साल के अंत में होने वाले क्वाड समिट के लिए भी माहौल तैयार कर सकता है. इस साल क्वाड समिट की मेजबानी भारत करने वाला है.

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने 2007 में क्वाड बनाया था. अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया है. एक्सपर्ट्स मानना है कि अमेरिका सोमवार को तियानजिन में होने वाली मोदी और शी की बैठक पर करीबी नजर रखेगा.

अमेरिका की नजर भारत और चीन के बीच बातचीत पर होगी, जो द्विपक्षीय तनाव को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं. हालांकि इससे इस नतीजे पर भी नहीं पहुंचा जा सकता कि टैरिफ को लेकर तनाव की वजह से भारत-अमेरिका के संबंध टूट चुके हैं.

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