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Chhath Puja 2025: जल, धूप, हवा और भूमि के साथ संवाद हैं छठ के गीत

Chhath Puja 2025: सूरज भगवान अस्त होने की ओर बढ़ रहे हैं। सुनहरी किरणें नदी के जल पर पड़ रही हैं। एक-एक व्रती सिर झुकाए अर्घ्य दे रही है और उसी क्षण हवा में एक सुर उठता है- “सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ! हे घूमइछा संसार, हे घूमइछा संसार।” तब महसूस होता है कि सिर्फ पूजा नहीं हो रही, गीत भी हो रहा है, धन्यवाद भी हो रहा है, आस्था भी हो रही है। ये गीत महज संगीत नहीं, बल्कि नदी, धूप, पवन, जल और भूमि के साथ संवाद हैं। जब व्रती अपनी कर-चढ़ावा प्रसाद लेकर छठ घाट तक चलती है, तब गीत उसके साथ-साथ चलते हैं।

 इन छठ गीतों में रोजमर्रा की भाषा सुनाई देती है। “केलवा के पात पर उगेलन सूरज मल झांके, हे छठी मइया” जैसे बोलों में न केवल प्रकृति के दृश्य मिलते हैं, बल्कि जीवन-संघर्ष की झलक भी दिखती है। इन गीतों का असली सौंदर्य उस वक्तिकता में है, जब साधारण जीवन का नियमित क्रम टूटता है। व्रती 36 घंटे या उससे अधिक समय तक उपवास में रहते हैं, निर्जल (या बेहद सीमित जल) ग्रहण करते हैं और नदी घाट पर एकांत में खड़े होते हैं। उस समय गीत-स्वर उनकी भाषा बन जाते हैं। उदयशील सूर्य और अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देना, छठी मइया से आशीर्वाद मांगना- ये सब शब्द-स्वर में घुल जाते हैं।

हृदय नारायण झा: सुपरिचित छठ गीतकार (Chhath Puja 2025)

गोदी में प्रसाद लेकर घाट की ओर बढ़ती महिलाएं जब गीत गाती हैं, तो सिर्फ सुर नहीं उठते, उनमें वर्षों-पीढ़ियों की मेहनत, उपवास और समर्पण की धूल बसी होती है। ये गीत समुदाय को बांधते हैं। जब संध्या या प्रातः अर्घ्य के समय घाट पर सभी व्रती और प्रियजन मिलते हैं, तो गीत-लय के माध्यम से एक साझा अनुभव बनता है: “हम समान हैं, हमने व्रत लिया है, हम सूर्य को अर्घ्य दे रहे हैं, हम मइया से कुछ मांग रहे हैं।”

ये लोक गीत सामाजिक एकता का अमूल्य सूत्र बन जाते हैं। ये संस्कृति के वाहक भी हैं। बच्चों के कानों में ये गीत-स्वर घुल जाते हैं, घरों, तालाबों और घाटों में सुनते-सुनते ये उनकी पहचान बन जाते हैं। इस तरह छठ पूजा सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं रह जाती, बल्कि जीवन-मूल्य, धैर्य, उपवास और प्रकृति-समर्पण की आरोहणी बन जाती है।

ये गीत समय के परिवर्तन का सामना करते हुए भी जीवित हैं। जैसे-जैसे लोग महानगरों में चले गए, विदेशों में बसे, वहां भी छठ पूजा होती है और इसके साथ चलते हैं छठ गीत। यही कारण है कि कहा जाता है, गीतों के बिना महापर्व छठ अधूरा है। इन गीतों में निर्भय समर्पण गूंजता है, जब कई महिलाएं अपने परिवार-परिचितों से दूर, श्रम और उपवास के बीच खड़ी रहती हैं। खुद को भूलकर सूर्य को देखती हैं और गीत गाती हैं। उनकी आवाज में सुनाई देता है: “हमर जीवन के अंगना में छठी मइया आइलें, हम सनमान चाहित बानी।” इन गीत-स्वरों में प्रकृति और मानव के रिश्ते को नए सिरे से महसूस किया जा सकता है।

छठ के लोकप्रिय गीत (Chhath Puja 2025)

– कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय। होई ना बलम जी कहरिया, बहंगी घाटे पहुंचाय।

– पहिले-पहिल हम कईनी, छठी मइया व्रत तोहार। करिहा क्षमा छठी मइया, भूल-चूक गलती हमार।

– केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके। हो करेतु छठ बरतिया से झोंके ऊंके।

– सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ, हे घूमइछा संसार, हे घूमइछा संसार। आन दिन उगइ छा हो दीनानाथ, आहे भोर भिनसार, आहे भोर भिनसार।

शारदा सिन्हा: छठ गीतों की सांस्कृतिक धरोहर

इतिहास में देखें तो ये गीत न तो राजा के यश में लिखे गए, न ही शिक्षित संगीतकारों ने इन्हें व्यवस्थित किया। ये लोक-गले से निकले, लोक-घाट से गूंजे। फिर भी, इनका प्रभाव ऐसा है कि इसके बिना छठ की परिकल्पना संभव नहीं। शारदा सिन्हा ने छठ गीतों को व्यापक लोकप्रियता दी। बिहार-मगध की पारंपरिक भाषाओं (भोजपुरी, मैथिली, मगही) में उनकी मधुर आवाज ने छठ गीतों को स्थानीय लोक गीतों से बढ़कर पर्व का सांस्कृतिक प्रतीक बना दिया। उनके गाए गीतों में श्रद्धा, भक्ति, उत्सव और घर-परिवार के भाव झलकते हैं, जैसे ‘हे छठी मइया’ और ‘केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके’। उन्होंने लोक शैली को आधुनिक संगीत के साथ संयोजित किया। शारदा सिन्हा ने नहाय-खाय, खरना और सूर्य अर्घ्य जैसे अनुष्ठानों में अपनी आवाज दी, जिससे गीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अनुभव बन गए।

छठ पूजा: प्रकृति और आभार का पर्व

छठ पूजा सूर्य देव और उनकी बहन छठी मइया की आराधना है। यह त्योहार प्रकृति और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने से जुड़ा है। संतान की खुशहाली, परिवार के स्वास्थ्य और सुरक्षा की कामना के लिए पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंका विजय के बाद भगवान राम और सीता ने सूर्य की पूजा की थी। महाभारत काल में द्रौपदी ने परिवार की भलाई के लिए छठ व्रत रखा था। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक छठ मनाई जाती है। पूजा नहाय-खाय से शुरू होकर खरना, संध्या अर्घ्य, उषा अर्घ्य और पारण से समाप्त होती है। डूबते और उगते सूर्य की पूजा की जाती है।

सात समंदर पार छठ

छठ बिहार का महापर्व है, जो अब अन्य राज्यों और विदेशों में भी मनाया जा रहा है। छठी मइया की पूजा सात समंदर पार कर चुकी है। नेपाल, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मॉरिशस, सिंगापुर, जापान, यूएई, दक्षिण अफ्रीका जैसे 20 से अधिक देशों में छठ पूजा होती है। बिहारी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग जहां-जहां रहते हैं, वहां छठ मनाते हैं। दिल्ली-एनसीआर में छठ पूजा का दायरा बढ़ा है, जहां यमुना के घाट सजाए जाते हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भी छठ पूजा हो रही है।

छठ गीतों के रचनाकार और गायक

हृदय नारायण झा जैसे गीतकारों ने छठ गीतों को समृद्ध किया। उन्होंने शारदा सिन्हा के लिए 2002 में पहला भोजपुरी गीत ‘सकल जग तारिणी हे छठी माता’ लिखा और कुल 10 गीत (पांच भोजपुरी, पांच मैथिली) रचे। उनके गीत छठी मइया से लोगों का दिल का रिश्ता जोड़ते हैं। वे कहते हैं, “सार्थक और गहरे गीत लिखने के लिए अनुभव और साधना जरूरी है। परंपरा से जुड़े बिना गीत अर्थवान नहीं बनता।” शारदा सिन्हा की मृत्यु के बाद कल्पना पटवारी, हनी प्रिया, प्रियंका सिंह और प्रांजलि सिन्हा जैसी गायिकाओं ने उनके गीतों को गाया। कल्पना ने झा का लिखा ‘नहाए खाए दीनानाथ’ गाया।

प्रियंका सिंह: नई पीढ़ी की आवाज

प्रियंका सिंह, जो बचपन से छठ गीत गाती रही हैं, ने 2013 में ‘कांच ही बांस के बहंगिया’ गाया, जो 2014 में रिलीज हुआ। यह गीत पारंपरिक और पाश्चात्य फ्यूजन शैली में था और खूब पसंद किया गया। उन्होंने भोजपुरी सहित कई बोलियों में पांच हजार गीत गाए। वे कहती हैं, “भोजपुरी मेरी मातृ बोली है, इसलिए छठी मइया पर गाना आनंद की अनुभूति देता है।” शारदा सिन्हा, बिहारी ठाकुर और भरत शर्मा व्यास से उन्हें प्रेरणा मिली। उनके अनुसार, छठ पूजा संपूर्ण जीवन दर्शन को समझाती है। गीतों की लोकप्रियता का कारण सांस्कृतिक-धार्मिक आस्था, दैनिक जीवन का चित्रण और पारिवारिक भाव हैं।

बोलियों का बोलबाला

छठ गीतों की संख्या बढ़ रही है, हालांकि गुणवत्ता की कमी खलती है। फिर भी, नई सोच और युवा गीतकार, संगीतकार व गायक परंपरा को जीवित रख रहे हैं। प्रियंका सिंह कहती हैं, “गायन में बोलियों का बोलबाला हो रहा है। नई पीढ़ी इसे अपना रही है, यही परंपरा के वाहक हैं।”

इस तरह, छठ के गीत न केवल आस्था और प्रकृति के साथ संवाद हैं, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक धरोहर और जीवन-मूल्यों के संवाहक भी हैं।

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