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अमित शाह का दृढ़ संकल्प, सुरक्षाबलों की बहादुरी और शांति की राह पर नक्सली…ऐसे धुल रहे बस्तर के ‘दाग’

Naxal Surrender: बस्तर…जिसकी पहचान ही ‘नक्सलवाद’ बनकर रह गई थी. बस्तर…जिसके नाम से ही दिलो-दिमाग में घने जंगल, हथियारबंद नक्सली, आईईडी ब्लास्ट, जवानों की हत्याओं की खबरें…यही सब आंखों के सामने आती थीं. बस्तर का नाम आते ही जुबान पर पहला शब्द ‘नक्सलवाद’ आता था, जिसने इस खूबसूरत इलाके को दागदार बना लिया था और ये ऐसा दाग था जो मिटने का नाम नहीं ले रहा था. लेकिन नक्सलवाद को खत्म करने के सरकार के दृढ़ संकल्पों और सुरक्षाबलों की बहादुरी के कारण अब दशकों बाद बस्तर इस नक्सलवाद के चंगुल से आजाद होने की कगार पर है.

जगदलपुर में 210 हथियारबंद नक्सलियों ने हथियार छोड़कर संविधान की कॉपी हाथों में थाम ली है और मुख्यधारा में इनकी ‘घर वापसी’ हो गई है. जगदलपुर में 110 महिला समेत 210 नक्सलियों का रेड कार्पेट वेलकम किया गया और हाथों में संविधान की कॉपी लिए आई इनकी तस्वीरें छत्तीसगढ़ के इतिहास में आज एक नया अध्याय लिख रही हैं. एके-47, इंसास राइफल, रॉकेट लॉन्चर जैसे हथियार छोड़कर नक्सलियों ने एक हाथ में गुलाब और दूसरे हाथ में संविधान की कॉपी थामते हुए एक नया जीवन शुरू करने का संकल्प लिया है.

सरेंडर किया तो हुआ रेड कार्पेट वेलकम

इस मेगा सरेंडर के साथ ही उत्तर बस्तर और अबूझमाड़ नक्सलियों के आतंक से मुक्त हो गया है. इसके बाद अब केवल दक्षिणी बस्तर में ही कुछ नक्सली बच गए हैं. छत्तीसगढ़ में दो दिन पहले 27 नक्सलियों ने हथियार डाले थे. इसके अलावा, महाराष्ट्र में 61 नक्सलियों ने हथियार त्याग कर मुख्यधारा में वापसी की थी. सरकार का साफ संदेश है कि अगर सरेंडर करेंगे तो रेड कार्पेट वेलकम होगा, लेकिन हथियार उठाए रहेंगे तो मारे जाएंगे. देश के गृह मंत्री अमित शाह का भी नक्सलियों को साफ संदेश है कि जो आत्मसमर्पण करना चाहते हैं उनका स्वागत है, लेकिन जो लोग हथियार उठाए रहेंगे, उन्हें हमारी सुरक्षा बलों की कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.

20 महीनों में 2100 नक्सलियों का सरेंडर

अमित शाह ने जगदलपुर में नक्सलियों के मेगा सरेंडर पर प्रतिक्रिया दी और बचे हुए नक्सलियों से मुख्य धारा में लौटने की अपील भी की. नक्सलियों के सरेंडर की बात करें तो, छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने के बाद से 2100 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जबकि 1785 को गिरफ्तार किया गया है और 477 नक्सली मारे गए हैं जिनमें कई सीसी मेंबर भी हैं. अमित शाह ने डेडलाइन तय की है कि 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को खत्म कर देंगे. ऐसे में बड़ी संख्या में नक्सलियों के सरेंडर के बाद वो दिन दूर नहीं जब छत्तीसगढ़ की धरती से नक्सलवाद का पूरी तरह सफाया हो जाएगा.

पिछले दिनों अमित शाह बस्तर दशहरा में शामिल होने भी पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने बैरिकेड हटाकर स्थानीय लोगों से मुलाकात कर बस्तर और पूरे छत्तीसगढ़ को एक संदेश देने की कोशिश की है कि अब नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है और इसके अंत के साथ ही ये क्षेत्र में उन तमाम बुनियादी सुविधाओं से संपन्न हो जाएंगे, जो यहां के लोगों के लिए अब तक सपना ही बनकर रह गए थे.

नक्सल प्रभावित इलाकों में बदलाव की बयार

नक्सलियों के सरेंडर के साथ ही उनके पुनर्वास के क्षेत्र में भी सकारात्मक प्रगति हुई है. सरेंडर करने वाले नक्सलियों को सरकार की पुनर्वास नीति के तहत लाभ मिल रहा है. नक्सलियों के सरेंडर करने और उनके मारे जाने के बाद नक्सल प्रभावित इलाकों में भी बदलाव की बयार बह रही है. अब इन इलाकों में विकास के कई कार्य हो रहे हैं, मोबाइल टॉवर लगाए गए हैं, सड़कें बन चुकी हैं, लोगों को आवास की सुविधा मिल रही है, बाजारों में रौनक रहने लगी है. लोग बेखौफ होकर अब घरों से निकल पाते हैं.

सरकार पर बढ़ा नक्सलियों का भरोसा

पुलिस, सुरक्षा बलों और स्थानीय प्रशासन के प्रयास अब रंग लाते दिखाई दे रहे हैं. कई बड़े और खूंखार नक्सलियों के मारे जाने व सरेंडर करने के बाद अब बाकी बचे हुए नक्सली मुख्यधारा से जुड़ने लगे हैं. अलग-अलग कंपनियों में शामिल नक्सलियों को इस बात का एहसास हो चुका है कि अगर वे सरेंडर कर देंगे तो बेहतर जिंदगी जीने पाएंगे, उनके बच्चों को भविष्य उज्ज्वल होगा. लेकिन, अगर उन्होंने हथियार थामे रखा तो ये रास्ता उनको मौत के दरवाजे तक ही ले जाएगा. सरकार भी यही चाहती है कि नक्सली सरेंडर कर मुख्यधारा से जुड़ें और इसके लिए सरकार ने अपनी तरफ से हरसंभव पहल की है.

पिछले तीन दिनों में गढ़चिरौली और जगदलपुर में नक्सलियों का मेगा सरेंडर इस बात का उदाहरण है कि शांतिपूर्ण जीवन की तलाश कर रहे नक्सलियों का सरकार पर भरोसा बढ़ा है और वे भी बेहतर जीवन के लिए, अपने बेहतर भविष्य के लिए हथियार छोड़ संविधान की कॉपी थाम रहे हैं.

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