रायपुर: छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजनों को बढ़ावा देने वाले गढ़कलेवा के संचालन के लिए जारी टेंडर प्रक्रिया विवादों में घिर गई है। महिला स्वसहायता समूहों ने संस्कृति विभाग पर टेंडर की शर्तों में गुपचुप बदलाव और मनचाहे समूह को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया है। इस मुद्दे पर जमकर विरोध हो रहा है, और कई समूहों ने टेंडर प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की है।
टेंडर में गड़बड़ी का आरोप
गढ़कलेवा के संचालन के लिए तीन साल की देरी से जारी टेंडर पर सवाल उठे हैं। आरोप है कि संस्कृति विभाग ने तकनीकी मूल्यांकन के लिए तय 80 अंकों में न्यूनतम 50 अंक पाने की शर्त को बिना सूचना के बदल दिया। पहले दिन 50 अंक पाने वाले समूहों को पात्र माना गया, लेकिन अगले दिन नियम शिथिल कर सभी समूहों को प्रैक्टिकल (खानपान परीक्षा) में शामिल करने की अनुमति दी गई। इसके अलावा, एक विशेष स्वसहायता समूह पर पांच समूहों के साथ मिलकर सिंडिकेट बनाकर टेंडर हथियाने का भी आरोप है।
विवादों से पुराना नाता
वर्ष 2016 में सिविल लाइंस, रायपुर में शुरू हुए गढ़कलेवा का संचालन पहले बिना किराए के किया गया था। विरोध के बाद 10 हजार रुपये किराया तय किया गया। अगस्त 2022 में संचालक महिला स्वसहायता समूह का अनुबंध समाप्त होने के बाद, कोरोना और अन्य तकनीकी कारणों का हवाला देकर समिति को तीन साल का एक्सटेंशन दिया गया। पिछले माह नई संचालन समिति चुनने के लिए टेंडर जारी किया गया, जो अब विवादों में है। विरोधी समूहों का कहना है कि शर्तों में बदलाव विशेष समूह को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया।
विवाद के बाद क्या कहा अधिकारियों ने ?
संस्कृति विभाग के संचालक विवेक आचार्य ने दावा किया कि टेंडर प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि पहले केवल पांच समितियों को प्रायोगिक मूल्यांकन का मौका दिया जाता था, लेकिन इस बार अधिक भागीदारी को देखते हुए सभी समूहों को प्रैक्टिकल के लिए पात्र माना गया। ठेका उच्चतम दर वाले समूह को दिया जाएगा। वहीं, पायल तिवारी, रानी अग्रवाल, महिमा शर्मा, और नेहा उपाध्याय सहित अन्य स्वसहायता समूह की महिलाओं ने टेंडर प्रक्रिया रद्द करने, शर्तों की जांच करने, और वर्तमान संचालक समिति के वित्तीय लेनदेन की जांच की मांग की है।