भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जो रोजाना 2.3 करोड़ से ज्यादा यात्रियों को ढोता है। 1.35 लाख किलोमीटर से अधिक ट्रैक पर दौड़ने वाली ये ट्रेनें न सिर्फ देश को जोड़ती हैं, बल्कि हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रेन का वो पांच अंकों वाला नंबर- जैसे 12345 या 22641 आखिर कैसे तय होता है? ये कोई रैंडम संख्याएं नहीं हैं। ये एक वैज्ञानिक, तार्किक और ऐतिहासिक प्रणाली का हिस्सा हैं, जो ट्रेन की पहचान, प्रकार, जोन और दिशा सब कुछ बताती हैं। आज हम इसी रहस्य को खोलेंगे- इतिहास से लेकर वर्तमान तक, तरीके से लेकर वजह तक, सब कुछ विस्तार से समझेंगे।
भारतीय रेलवे का इतिहास: नंबरिंग सिस्टम की जड़ें
भारतीय रेलवे की कहानी 1853 से शुरू होती है, जब 16 अप्रैल को बॉम्बे (अब मुंबई) से ठाणे तक पहली पैसेंजर ट्रेन चली। शुरू में, हमारी रेलवे अंग्रेजी हुकूमत के तहत विकसित हुई और ट्रेनों को नामों या सरल संख्याओं से पहचाना जाता था। अंग्रेजी हुकूमत के दौर में रेलवे कई निजी कंपनियों के हाथ में था- जैसे ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे (GIPR), ईस्ट इंडियन रेलवे (EIR) और मैड्रास रेलवे। हर कंपनी अपनी सुविधा से ट्रेनों को नाम देती या नंबर असाइन करती। उस दौर में ‘अप’ और ‘डाउन’ की अवधारणा प्रचलित थी, जो ब्रिटिश रेलवे से ली गई थी। लंदन को केंद्र मानकर ‘अप’ ट्रेनें राजधानी की ओर जातीं, तो ‘डाउन’ राजधानी से दूर जातीं।
भारत में GIPR ने बॉम्बे को केंद्र बनाया, मैड्रास रेलवे ने मद्रास (चेन्नई) को। लेकिन ईस्ट इंडियन रेलवे ने कलकत्ता (कोलकाता) की ओर जाने वाली ट्रेनों को ‘डाउन’ कहा, शायद कलकत्ता को अंतिम गंतव्य मानकर। नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे में तो ‘अप’ पश्चिम की ओर था! ये कन्फ्यूजन इतना था कि एक ही नंबर की ट्रेनें अलग-अलग जोनों में चलतीं, जिससे टाइमटेबल और सिग्नलिंग में गड़बड़ी होती।
1860 के आसपास टाइमटेबल सिस्टम शुरू हुआ, लेकिन नंबर्स अभी भी जोनल थे। स्वतंत्रता के बाद, 1951 में रेलवे को जोनों में बांटा गया (जैसे नॉर्दर्न, सेंट्रल, ईस्टर्न), और नंबर्स भी जोन-विशेष हो गए। उदाहरण के लिए- कलकत्ता मेल को 1 अप/2 डाउन कहा जाता था। ये सिस्टम पुराना पड़ गया क्योंकि ट्रेनों की संख्या बढ़ती गई।
1980-90 का दौर: 4-अंकों की यूनिवर्सल सिस्टम
1980 के दशक तक रेलवे में 10,000 से ज्यादा ट्रेनें चल रही थीं। 1989 में एक बड़ा बदलाव आया- सभी लंबी दूरी की पैसेंजर ट्रेनों के लिए 4-अंकों की ‘यूनिवर्सल नंबर्स’ लागू की गईं। ये नंबर्स पूरे देश में यूनिक थे, जोनल कन्फ्यूजन खत्म हो गया। इस सिस्टम में:
पहला अंक: जोन को दर्शाता (उदाहरण: 1 = सेंट्रल रेलवे, 3 = ईस्टर्न रेलवे)।
दूसरा अंक: जोन का हेडक्वार्टर या डिवीजन।
तीसरा अंक: अंतिम गंतव्य (जैसे 0 = हावड़ा, 1 = मुंबई, 4 = दिल्ली)।
चौथा अंक: ट्रेन का सीरियल नंबर।
उदाहरण: ट्रेन नंबर 2615 – यहां 2 = साउथ सेंट्रल रेलवे, 6 = हेडक्वार्टर, 1 = मुंबई गंतव्य, 5 = सीरियल। विपरीत दिशा की ट्रेन को अगला नंबर (जैसे 2616) मिलता। सुपरफास्ट ट्रेनों को अलग सीरीज दी गई। लेकिन जैसे-जैसे ट्रेनें बढ़ीं, 4-अंकों की सीमा खत्म होने लगी।
2010 का क्रांतिकारी बदलाव: 5-अंकों की आधुनिक प्रणाली
20 दिसंबर 2010 को रेल मंत्रालय ने ऐतिहासिक फैसला लिया- सभी पैसेंजर ट्रेनों के लिए 5-अंकों की नई स्कीम लागू की गई। वजह? 4-अंकों की संख्या यानी 0 से 9999 तक, समाप्त हो चुकी थी, और 10,000+ दैनिक ट्रेनों के लिए ज्यादा स्पेस चाहिए था। ये सिस्टम ‘साइंटिफिक, लॉजिकल, यूनिफॉर्म और कंप्यूटर-फ्रेंडली’ था, जो पूरे नेटवर्क पर लागू हुआ। पुराने 4-अंक वाले नंबर्स को ‘1’ प्रिफिक्स देकर 5-अंक का बनाया गया (जैसे 2615 को 12615)।
इस सिस्टम में ट्रेन नंबर को पांच अंकों के रूप में लिखा जाता है, जैसे ABCDE, जहां प्रत्येक अंक का अपना विशिष्ट अर्थ होता है। पहला अंक ट्रेन के प्रकार को दर्शाता है: उदाहरण के लिए, 0 स्पेशल ट्रेनों (जैसे समर स्पेशल या हॉलिडे स्पेशल) के लिए आरक्षित होता है, जबकि 1 या 2 नंबर लंबी दूरी की एक्सप्रेस ट्रेनों को इंगित करता है। जब 1xxx सीरीज समाप्त हो जाती है तो 2 का उपयोग होता। 12xxx या 22xxx सुपरफास्ट ट्रेनों (जैसे राजधानी या शताब्दी) के लिए, 3 नंबर लोकल पैसेंजर ट्रेनों के लिए और 4 सबअर्बन ट्रेनों (जैसे मुंबई लोकल या दिल्ली MRTS) के लिए इस्तेमाल होता है।
पांच-अंकीय प्रणाली: प्रत्येक अंक का गहरा अर्थ
नई प्रणाली में पांच अंक ट्रेन की पूरी पहचान बयान करते हैं। चौथा और पांचवां अंक सामान्यतः रैंडम होते हैं, जो यूनिकनेस सुनिश्चित करते हैं (सिवाय कुछ सबअर्बन मामलों के, जहां चौथा अंक रोलिंग स्टॉक टाइप दर्शाता है)।
पहला अंक: यह ट्रेन की श्रेणी बताता है
0XXXX: स्पेशल ट्रेनें (समर, हॉलिडे, एग्जाम स्पेशल या अतिरिक्त लोड क्लियर करने वाली)।
1XXXX या 2XXXX: रेगुलर एक्सप्रेस/मेल या सुपरफास्ट। खासकर 12XXX या 22XXX सुपरफास्ट (जैसे दुर्गा, युवा, राजधानी, शताब्दी)। बाकी एक्सप्रेस।
दूसरा अंक- जोन या श्रेणी संकेत
पहले अंक के साथ मिलकर दूसरा अंक अक्सर यह बताता है कि ट्रेन किस रेलवे-जोन से संबंधित है या किस श्रेणी में आती है (खासकर जब पहला अंक 0/1/2 हो)। उदाहरण के तौर पर, 12xxx या 22xxx श्रेणी की बहुत सी ट्रेनें सुपरफास्ट/एक्सप्रेस श्रेणी में आती हैं और दूसरे अंक से जोन-रिलेशन तय किया जा सकता है। (जोन-मैपिंग जटिल है- कुछ सेक्शनों में ओवरलैप और अपवाद होते हैं)।
तीसरा अंक- मैन्टेनेंस/मंडीवाइज या डिवीजन संकेत
जब दूसरे अंक विशेष (जैसे 2) हो तो तीसरे अंक से यह निर्धारित होता है कि ट्रेन किस जोन/डिवीजन में मेन्टेन्ड होती है।
चौथा और पांचवा अंक- यूनिक सीरियल (एक ट्रेन-सर्विस की पहचान)
अंत के दो अंक सामान्यतः उस ट्रेन-सेवा के यूनिक सीरियल नंबर होते हैं ताकि पूरे पांच-अंकीय कोड से एक-एक ट्रेन की अनन्य पहचान बन जाय। यानी यह वही संख्याएं हैं जो एक ट्रेन के आने-जाने (up/down) को दर्शाती हैं।
जब पहला अंक 0, 1 या 2 हो, तो दूसरा अंक जोनल रेलवे कोड को बताता है, जैसे 1 सेंट्रल रेलवे के लिए, 3 ईस्टर्न या ईस्ट सेंट्रल के लिए, 4 नॉर्दर्न, नॉर्थ सेंट्रल या नॉर्थ वेस्टर्न के लिए, 5 नॉर्थ ईस्टर्न या नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर के लिए, 6 साउथ सेंट्रल के लिए, 7 साउथ ईस्टर्न या साउथ ईस्ट सेंट्रल के लिए, 8 साउथ वेस्टर्न के लिए और 9 वेस्टर्न या वेस्ट सेंट्रल के लिए। तीसरा अंक ट्रेन के अंतिम गंतव्य को कोड करता है, जैसे 0 हावड़ा या हावड़ा ब्रॉड-गेज के लिए, 1 मुंबई के लिए, 2 चेन्नई के लिए, 3 बैंगलोर के लिए, 4 दिल्ली के लिए, 5 अमृतसर के लिए, 6 मदुरै के लिए, 7 भुवनेश्वर के लिए, 8 त्रिवेंद्रम के लिए और 9 गुवाहाटी के लिए।
अंतिम दो अंक (चौथा और पांचवां) ट्रेन का सीरियल या यूनिक पहचान संख्या प्रदान करते हैं, जो इसे पूरे नेटवर्क में अद्वितीय बनाते हैं, और विपरीत दिशा की ट्रेन को अगला क्रमिक नंबर (जैसे +1) दिया जाता है। उदाहरणस्वरूप, ट्रेन नंबर 12001 में पहला अंक 1 लंबी दूरी का, दूसरा 2 सुपरफास्ट का, तीसरा 0 हावड़ा गंतव्य का संकेत देता है, जबकि 13106 में 1 लंबी दूरी, 3 ईस्टर्न जोन और 1 मुंबई गंतव्य को दर्शाता है, जो बंगल कोलकाता से मुंबई मेल है। इस प्रकार, यह प्रणाली ट्रेन की ट्रैकिंग, शेड्यूलिंग और पैसेंजर सुविधा को अत्यंत कुशल बनाती है।



















