रायपुर. राजधानी में पुलिस कमिश्नर प्रणाली नवंबर के बजाय जनवरी से लागू किए जाने के संकेत मिले हैं। दरअसल प्रणाली का अध्ययन करके उसे लागू करने के संबंध में एडीजी प्रदीप गुप्ता की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट तो सौंप दी है, लेकिन कुछ सदस्यों द्वारा इसे एक नवंबर से लागू करने में तकनीकी दिक्कत बताते हुए आपत्ति जताए जाने की चर्चा है। दरअसल ओडिशा और मप्र की प्रणाली के कुछ बिन्दुओं को शामिल करके उसे छत्तीसगढ़ के लिए प्रभावी बताया गया है, लेकिन विधानसभा में इसके लिए संकल्प पारित करने और जनवरी से शुरू होने वाले पुलिस के वर्किंग ईयर को इसका आधार बताया गया है। दूसरी तरफ रायपुर पुलिस कमिश्नर कार्यालय के लिए पुराने पीएचक्यू भवन को उपयुक्त माना गया है, लेकिन वहां दफ्तर शुरू करने कोई तैयारी भी 24 अक्टूबर तक नजर नहीं आई है। इस भवन में पहले से ही कई दफ्तर चल रहे हैं।
एडीजी या आईजी हो सकते हैं पहले पुलिस कमिश्नर रायपुर पुलिस कमिश्नरी के पहले कमिश्नर एडीजी या आईजी स्तर के अधिकारी हो सकते हैं। उनके अधीन दो जोन में दो एसएसपी या एसपी डीसीपी के रूप में तैनात किए जाएंगे। इनके नीचे एसीपी के रूप में एसपी या एएसपी व सीएसपी स्तर के अधिकारी काम करेंगे। जिनके जिम्मे चार से लेकर दो थानों की जिम्मेदारी होगी। वर्तमान में जिले में एसएसपी पदस्थ हैं और एएसपी सिटी, एएसपी ग्रामीण, एएसपी वेस्ट, एएसपी नवा रायपुर, एएसपी क्राइम, एएसपी महिला अपराध, एएसपी प्रोटोकाल और एएसपी ट्रैफिक पद पर 8 अधिकारी तैनात हैं।
इनके सुपरविजन में सिविललाइंस, आजाद चौक, पुरानीबस्ती, विधानसभा, माना, नवा रायपुर, उरला और डीएसपी मुख्यालय में 8 (डीएसपी) नगर पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी तैनात हैं। लेकिन कमिश्नरी के लिए कम से कम 60 अधिकारियों और अतिरिक्त स्टाफ की जरूरत पड़ेगी।
जिला व कार्यपालिक दंडाधिकारी की तरह फैसले ले पाएंगे पुलिस अफसर
पुलिस कमिश्नरी में कमिश्नर जिला दंडाधिकारी (कलेक्टर) और उनके अधीन डीसीपी और एसीपी कार्यपालिक दंडाधिकारी की तरह फैसले ले पाएंगे। इससे अपराधियों पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई संभव हो सकेगी। कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने पर लाठीचार्ज या अन्य कड़ाई के आदेश पुलिस अधिकारी जारी कर सकेंगे। जिसका अधिकार अभी तहसीलदार या एडीएम के पास है। इसी तरह धरना-प्रदर्शन समेत शहरी क्षेत्र में किसी भी तरह की सभा की अनुमति भी पुलिस अधिकारी देंगे। हिस्ट्रीशीटरों के जिला बदर के मामले भी पुलिस आयुक्त सुनेंगे। किसी को पुलिस हिरासत में लेने के अलावा गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और रासुका जैसी कड़ी कार्रवाई करने में पुलिस खुद सक्षम होगी। होटल, बार और हथियारों के लाइसेंस जारी करने, धरना-प्रदर्शन की अनुमति देने के लिए अभी पुलिस से रस्म अदायगी के रूप में एनओसी या राय ली जाती है। लेकिन कमिश्नर प्रणाली में ये अधिकार भी पुलिस के पास होंगे।
कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर सरकार तय कर सकती हैं 1 नवंबर या कोई भी तारीख
पीएचक्यू सूत्रों के मुताबिक किसी भी आपत्ति को दरकिनार करने या कमिश्नर प्रणाली लागू करने की तारीख का फैसला करने का अधिकार सरकार के पास है। कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर कमिश्नरी की तारीख की घोषणा राज्योत्सव में पीएम मोदी के जरिये कराई जा सकती है। चर्चा है कि शुरुआत में आईजी स्तर के अधिकारी को कमिश्नर की जिम्मेदारी दी जाएगी। हालांकि एडीजी की पदस्थापना का भी विकल्प रहेगा। वर्तमान में ईओडब्ल्यू-एसीबी चीफ आईजी स्तर के अधिकारी हैं जबकि पहले इस पद पर एडीजी की नियुक्ति की जाती थी। इसी तरह भूपेश शासनकाल में तो ईओडब्ल्यू और एसीबी की कमान डीआईजी स्तर के अधिकारी संभालते रहे हैं।
कमेटी के एक सदस्य नवंबर पर पहले ही जता चुके आपत्ति
डीजीपी अरूणदेव गौतम द्वारा बनाई गई कमेटी में एडीजी प्रदीप गुप्ता, आईजी अजय यादव, अमरेश मिश्रा, ओपी पाल, संतोष सिंह और अभिषेक मीणा शामिल थे। कमेटी बनाने और इसकी रिपोर्ट डीजीपी एडी गौतम को सौंपे जाने से पहले ही उच्च स्तरीय निर्देश पर तैयार प्रस्तावित प्रतिवेदन रिपोर्ट में एक सदस्य ने कमिश्नर प्रणाली को एक नवंबर से लागू करने में कानूनी अड़चन का जिक्र भी किया था। इसके बाद राज्यों की प्रणाली का अध्ययन करने कमेटी बनाकर उससे रिपोर्ट मांगी गई, जिसमें छत्तीसगढ़ के लिए बेहतर प्रणाली और सेटअप को लेकर अनुशंसाएं दी गई हैं।


















