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महाभरणी श्राद्ध से मिलता है गया में श्राद्ध करने के समान पुण्य, पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति, जानें इस साल कब

शास्त्रों में श्राद्ध के दो प्रकार बताए गए हैं। एक, जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, हर वर्ष उस तिथि पर किए जानेवाला श्राद्ध ‘तिथि’श्राद्ध कहलाता है। दूसरा, प्रत्येक वर्ष पितृ पक्ष में व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर किया जानेवाला श्राद्ध ‘पर्व’ श्राद्ध है। मनुष्य द्वारा पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों को पितृ लोक में अन्न एवं जल से तृप्ति मिलती है।

पितृ पक्ष के दौरान किए जानेवाले श्राद्धोंं मेें ‘महाभरणी’ श्राद्ध विशेष है। यह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता है। इस अनुष्ठान का उद्देश्य मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति और उन्हें प्रसन्न करना है, जिससे वे परिवार पर अपना आशीर्वाद बनाए रखें। इस श्राद्ध को करने से व्यक्ति को वही फल मिलता है, जो बिहार के बोधगया में पिंडदान करने से मिलता है। सिर्फ इतना ही नहीं, यदि मृत व्यक्ति ने अपने जीवन काल में कोई तीर्थ यात्रा नहीं की है, तब भी इस श्राद्ध को करने से मृत व्यक्ति को गया में श्राद्ध करने के समान पुण्य मिलता है। यह व्यक्ति को पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति दिलाता है।

जब‍ पितृ पक्ष में किसी तिथि विशेष को अपराह्न काल के दौरान भरणी नक्षत्र होता है, तब इसे ‘महाभरणी’ श्राद्ध कहते हैं। भरणी नक्षत्र चतुर्थी या पंचमी तिथि को विशेष फलदायी होता है। इस बार चतुर्थी-पंचमी तिथि (11 सितंबर) एक ही दिन होने और भरणी नक्षत्र के संयोग से ‘महाभरणी’ श्राद्ध और भी विशिष्ट हो गया है। भरणी नक्षत्र के देवता यम हैं, इसलिए इस नक्षत्र में किया गया श्राद्ध यमराज को प्रसन्न करता है और पितरों को शांति प्रदान करता है। भरणी नक्षत्र में यम का व्रत और पूजन विशेष पुण्यदायी होता है। यह श्राद्ध मातृगया, पितृगया, पुष्कर तीर्थ और बद्रीकेदार आदि तीर्थों पर अधिक फलदायी माना गया है।

‘रोहिणी’ मुहूर्त, जिसे रौहिण मुहूर्त या रोहिना मुहूर्त भी कहते हैं, पितृ पक्ष और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए अपराह्न काल में एक विशिष्ट समय होता है। यह इस श्राद्ध को करने का शुभ समय होता है। यह ‘कुतप’ मुहूर्त के बाद और अपराह्न काल के अंत तक चलता है। व्यक्ति के निधन के पहले वर्ष महाभरणी श्राद्ध नहीं किया जाता, क्योंकि मृत्यु के पहले वर्ष मृत व्यक्ति के वार्षिक श्राद्ध होने के कारण उसमें प्रेतत्व का अंश बना रहता है। कुछ विद्वानों के मतानुसार महाभरणी श्राद्ध किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद एक बार किया जाता है, तो ‘धर्मसिंधु’ ग्रंथ के अनुसार यह प्रत्येक वर्ष पितृ पक्ष में किया जा सकता है।

इसके अलावा आश्विन कृष्ण पक्ष के पंचमी श्राद्ध को ‘कुंवारा पंचमी’ श्राद्ध भी कहते हैं। ऐसे व्यक्ति, जिनकी मृत्यु अविवाहित रहते हुए हुई हो और उनकी तिथि ज्ञात नहीं हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है। यही नहीं, जिनकी मृत्यु पंचमी के दिन हुई हो, उनका भी श्राद्ध इस दिन किया जाता है।

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