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तेजस्वी यादव के सामने अब दोहरे दबाव से उबरने की होगी चुनौती

पटना। बिहार चुनाव का शंखनाद होने के बाद आईआरसीटीसी घोटाले में सोमवार को आरोप तय होने से लालू परिवार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बिहार में इंडिया गठबंधन के अगुआ हैं। उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया जाना बाकी है। कांग्रेस इस बारचुनाव में किसी को चेहरा घोषित करने के सवाल को टालती रही है।

अदालत के ताजा फैसले के बाद कांग्रेस का रवैया क्या रहता है, यह देखना होगा। अब उसके पास बिना चेहरा चुनाव में जाने का ठोस तर्क है। वैसे सीटों के बंटवारे के सवाल पर भी कांग्रेस और राजद के रिश्तों में थोड़ी तल्खी है। वैसे राजद आईआरसीटीसी घोटाले को साजिश करार देकर सहानुभूति बटोरने की हरसंभव कोशिश करेगा।

राजद के खिलाफ भ्रष्टाचार के सवाल पर एनडीए पहले से हमलावर रहा है। अब उसे प्रहार का नया धारदार हथियार मिल गया है। अब तक एनडीए के निशाने पर लालू प्रसाद और उनका शासनकाल रहा। चारा घोटाला में लालू प्रसाद अकेले फंसे थे। आईआरसीटीसी घोटाले में तेजस्वी यादव के खिलाफ भी आरोप गठित होने से चुनाव में वह सीधे निशाने पर रहेंगे। अदालत ने फैसले में जो कुछ कहा है, उसे एनडीए जोर- शोर से उठाएगा। इंडिया गठबंधन को इस प्रहार पर जवाब देना मुश्किल होगा।

राजद आईआरसीटीसी घोटाले में मुकदमे को साजिश करार देकर सहानुभूति बटोरने की रणनीति भी अपनाएगा। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने आरोप गठित होने के तत्काल बाद अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि मैं निर्दोष हूं। थोड़ी देर बाद तेजस्वी यादव ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया- ‘जब तक दंगाई एवं संविधान विरोधी बीजेपी सत्ता में हैं और मेरी उम्र है, बीजेपी से लड़ते रहेंगे। तूफानों से लड़ने में मजा आता है। हमने संघर्ष पथ चुना है।ङ्घ.हम लड़ेंगे और जीतेंगे।’ इस ट्वीट से उन्होंने दो संदेश दिए हैं- पहला, उनका हौसला बुलंद है। दूसरा, उन्होंने अपने समर्थकों को इशारों में बताया है कि हमारे खिलाफ साजिश हुई है।

राजद की ताकत उसका पारंपरिक ‘माई’ समीकरण रहा है। बुरे दौर में भी यह समीकरण कमोबेश उसके साथ रहा है। लालू प्रसाद की यात्रा में सबसे बेहतर प्रदर्शन 1995 का विधानसभा चुनाव था। उनके नेतृत्व में जनता दल को 27.98 प्रतिशत वोट मिले और 324 सीटों वाली विधानसभा में 167 पर जीत मिली थी। उस दौर में लालू प्रसाद दलित-पिछड़ा समाज के निर्विवाद नेता के बतौर उभरे थे। चारा घोटाले में घिरने के बाद से उनका ग्राफ गिरने लगा। अगले ही चुनाव में राजद को बहुमत नहीं मिला। वर्ष 2000 में राजद को 124 सीटें ही मिलीं और वह बहुमत से दूर रह गया। दूसरे दलों के सहयोग से सरकार बनी। 2010 में राजद का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। उस चुनाव में राजद को महज 22 सीटें मिलीं। राजद 168 सीटों पर लड़ा और 18.84 फीसदी वोट मिले। 2015 में जदयू और राजद साथ थे। राजद 101 सीट पर लड़ा था। इसने 80 सीटें जीतीं और 18.35 फीसदी वोट मिले थे। चुनावों का यह अंकगणित बताता है कि हर मोड़ पर ‘माई’ का साथ राजद को मिलता रहा। 2020 के चुनाव में राजद, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन का चेहरा तेजस्वी यादव थे।

मनोवैज्ञानिक दबाव बनेगा

लालू प्रसाद 1990 के दशक में अपनी खास अदा के कारण बिहार ही नहीं, देश की सियासत में आकर्षण बन गए थे। लेकिन चारा घोटाले में घिरने के बाद से उनका ग्राफ गिरता गया। तेजस्वी के सामने भी दो बड़ी चुनौतियां हैं- पहला, उन पर जो मनोवैज्ञानिक दबाव बनेगा, उससे वह कैसे उबरते हैं और दूसरा, समीकरण में नए सामाजिक समूहों को जोड़ने का सिलसिला कैसे जारी रख पाते हैं।

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