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इस बार कड़ाके की ठंड के आसार, पहाड़ी राज्यों में ज्यादा बर्फबारी संभव

नई दिल्ली. देश में इस साल कड़ाके की ठंड पड़ने के आसार हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक ला नीना के कारण पारा सामान्य से ज्यादा गिरने का अनुमान है। मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा कि प्रशांत महासागर में वर्तमान में तटस्थ परिस्थितियां बनी हुई हैं। साथ ही कहा कि मानसून के बाद ला नीना की संभावना बढ़ जाती है। आईएमडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हमारे मॉडल इस साल अक्तूबर-दिसंबर के दौरान ला नीना विकसित होने की अच्छी संभावना दर्शाते हैं। ला नीना आमतौर पर भारत में कड़ाके की ठंड से जुड़ा होता है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन कुछ हद तक तापमान में ज्यादा गिरावट को रोक सकता है।

मौसम पूर्वानुमान लगाने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट वेदर ने भी प्रशांत महासागर में ठंड के संकेत देखे हैं। स्काईमेट के अध्यक्ष जीपी शर्मा ने बताया कि महासागर पहले से ही सामान्य से ठंडा है। हालांकि, यह अभी ला नीना की सीमा तक नहीं पहुंचा है। उन्होंने कहा कि एक अल्पकालिक ला नीना से इनकार नहीं किया जा सकता है। प्रशांत महासागर का ठंडा पानी अक्सर हिमालयी क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड और अधिक बर्फबारी का कारण बनता है।

स्काईमेट के अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि अगर ला नीना आता है तो अमेरिका पहले से ही सूखी सर्दियों (ड्राई विंटर) के लिए अलर्ट पर है। जबकि भारत में इसका असर खासतौर पर उत्तर भारत और हिमालयी इलाकों में पड़ेगा। ये कड़ाके की ठंड और पहाड़ी राज्यों में बर्फबारी ला सकता है।

आईआईएसईआर मोहाली और ब्राजील के राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ने 2024 में एक अध्ययन किया था। इसमें पाया गया कि ला नीना की स्थितियां उत्तर भारत में शीतलहरों को शुरू करने में अहम भूमिका निभाती हैं। मौसम विभाग की ओर से सितंबर की शुरुआत में भी औसत से ज्यादा बारिश की चेतावनी दी गई थी, जिसका असर इस महीने की शुरुआत में देखने को भी मिला। कई प्रदेशों में बारिश आफत बनकर बरसी।

क्या है ला नीना:

दरअसल, प्रशांत महासागर में होने वाले एक मौसमी पैटर्न को ला नीना कहा जाता है। इस दौरान भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है। ला नीना के कमजोर पड़ने पर भीषण गर्मी पड़ती है।

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