
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लोकसभा में बिना प्रमाण के उद्योगपति गौतम अडानी को फायदा पहुंचाने के राहुंल गांधी के आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए भाजपा सदस्य निशिकांत दुबे ने विशेषाधिकार हनन और सदन की मर्यादा भंग करने का नोटिस दिया है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को इसपर फैसला करना है। अगल वह इसे विशेषाधिकार हनन मानेंगे तो संसदीय समिति के समक्ष राहुल को अपनी सफाई देनी होगी।
अडानी समेत, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, माल्या कांग्रेस काल की देन
मंगलवार को लोकसभा में माहौल तब बहुत गर्म हो गया था जब राहुल गांधी ने अभिभाषण की बजाय अडानी मुद्दे पर सरकार और सीधे प्रधानमंत्री पर गंभीर आरोप लगाए थे और दावा किया था कि अडानी को फायदा पहुंचाया गया है। उस वक्त भी भाजपा सदस्यों की ओर से इसका विरोध किया गया था और राहुल से साक्ष्य मांगे गए थे। जवाब में निशिकांत समेत कुछ दूसरे सदस्यों ने कहा था कि अडानी समेत, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, माल्या कांग्रेस काल की देन हैं।
बुधवार को निशिकांत ने विशेषाधिकार हनन नोटिस दिया। उनकी मांग को तब और बल मिल गया जब संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने राहुल की टिप्पणियों का जिक्र करते हुए उसे नियमों के विपरीत बताया और कहा कि नियमावली-353 के तहत किसी वैसे सदस्य पर आरोप नहीं लगाए जा सकते जो सदन में मौजूद नहीं है।
उन्होंने आसन से राहुल की टिप्पणियों को कार्यवाही से हटाने के आग्रह के साथ-साथ विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई की भी मांग की। बाद में निशिकांत ने मीडिया से बातचीत में राहुल के आरोपों को झूठ का पुलिंदा बताया और कहा कि इससे साबित नहीं होता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री पर जो आरोप लगाए हैं, वे सच हैं।
विशेषाधिकार हनन के नोटिस पर विचार करने से स्पीकर को परहेज
निशिकांत ने कहा कि सदन नियम से चलता है और नियम साफ कहता है कि आरोप लगाने से पहले उस सदस्य को नोटिस देना होता है फिर स्पीकर से अनुमति भी लेनी पड़ती है, जो राहुल ने नहीं किया। नियम यह भी है कि सदन में किसी सदस्य पर आरोप लगाते हुए अगर समर्थन में कागजात पेश किए जाते हैं तो उसे सत्यापित भी करना होता है। राहुल ने यह भी नहीं किया।
निशिकांत ने कहा कि प्रधानमंत्री पर सारे आरोप बिना प्रमाण के लगाए गए। इसका सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। सामान्य तौर पर विशेषाधिकार हनन के नोटिस पर विचार करने से स्पीकर परहेज करते हैं, लेकिन अगर लोकसभा अध्यक्ष फैसला लेते हैं तो राहुल को विशेषाधिकार समिति के सामने उपस्थित होकर अपनी सफाई देनी होगी। वहां लगाए गए आरोपों का साक्ष्य भी देना होगा। वरना कार्रवाई हो सकती है। यूं तो विशेषाधिकार हनन में निलंबन तक का प्राविधान है लेकिन सामान्यतया माफी मांगने के लिए कहा जा सकता है।