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सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ आखिरी दिन भी सुनाएंगे ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाले हैं. उनकी अगुवाई वाली 7 जजों की बेंच ने इस केस में फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मामले में फैसले का दिन है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल को ऐतिहासिक फैसलों के लिए जाना जाएगा. उन्होंने कई अहम फैसले देने वाली बेंच की चीफ जस्टिस के तौर पर अगुवाई की तो वहीं कई मामलों में वह बेंच का हिस्सा रहे. इन मामलों में आर्टिकल 370, समलैंगिक विवाह समेत कई दिलचस्प फैसले शामिल रहे हैं. आइए जानते हैं, डीवाई चंद्रचूड़ के टॉप 10 फैसले…

राम मंदिर पर फैसले वाली बेंच में थे चंद्रचूड़

अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की राह प्रशस्त करने वाला फैसला 2019 में आया था. इस अहम फैसले को 5 जजों की बेंच ने सुनाया था, जिसमें डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे. वह उस दौरान चीफ जस्टिस नहीं थे किंतु एकमत से फैसला देने वाली बेंच का हिस्सा थे. यह फैसला इतना महत्वपूर्ण था कि देश के 500 सालों के इतिहास को बदलने वाला रहा है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण उसके बाद ही शुरू हुआ, जहां इसी साल 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी.

समलैंगिक विवाह पर क्या बोले थे चंद्रचूड़

भारत में भी समलैंगिक विवाह की मांग उठती रही है. इस अहम मामले की सुनवाई भी चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने की थी. उनकी बेंच ने समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने से इनकार करते हुए कहा था कि इस पर फैसला हम संसद पर छोड़ते हैं. यदि भविष्य में समाज को लगता है कि ऐसा करना जरूरी है तो वह फैसला लेगा.

आर्टिकल 370 की मांग पर लंबी सुनवाई

इसी तरह अनुच्छेद 370 हटाने के लिए खिलाफ दायर याचिकाओं पर भी चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने लंबी सुनवाई की थी. अदालत ने आर्टिकल 370 हटाने को संविधान के तहत ही माना था. इस केस में चीफ जस्टिस ने कहा था कि जजों ने संविधान और कानून के दायरे में रहकर ही फैसला लिया है.

एक झटके में समाप्त किया इलेक्टोरल बॉन्ड

भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिए की थी. इस व्यवस्था के माध्यम से भाजपा, कांग्रेस समेत सभी दलों ने करोड़ों रुपये हासिल किए थे. लेकिन चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने इसे खारिज कर दिया था. बेंच का कहना था कि यह व्यवस्था पारदर्शी नहीं है.

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न पर क्या बोला था SC

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को लेकर भी फैसला सुनाया था. बेंच का कहना था कि ऐसा होना महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन है. अदालत ने कहा था कि इससे महिलाएं कैसे कामकाज के लिए प्रोत्साहित हो सकेंगी.

दिल्ली सरकार बनाम केंद्र में क्या बोला SC

दिल्ली सरकार के प्रशासन और अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर विवाद एवं अंतिम निर्णय किसका मान्य होगा. इसे लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई हुई थी. इस पर अदालत ने कहा था कि ऐसे मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार को ही फैसले का अधिकार है, जो उसके दायरे में आते हैं.

निजता का अधिकार है धर्म बदलना

केरल के मशहूर हादिया मैरिज केस में फैसला सुनाने वाली बेंच का भी डीवाई चंद्रचूड़ हिस्सा थे. बेंच का कहना था कि यदि कोई युवती बालिग है तो यह उसका अधिकार है कि वह किससे विवाह कहे. इसके अलावा यदि उसने अपना धर्म मर्जी से बदल लिया है तो उस पर भी कोई आपत्ति नहीं कर सकता. अदालत ने धर्म बदलने को निजता का अधिकार करार दिया था.

सबरीमाला में महिलाओं की एंट्री

केरल के प्रतिष्ठित सबरीमाला मंदिर में रजस्वला स्त्रियों के प्रवेश पर रोक के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच ने फैसला दिया था, उसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे. चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए अपनी राय दी थी कि यह ऐसा करना असंवैधानिक है. संविधान के कई अनुच्छेद इसे वर्जित करते हैं और इस तरह की प्रैक्टिस जारी रखना गलत है.

कॉलेजियम पर अहम थी चंद्रचूड़ की राय

राष्ट्रीय न्यायिक आयोग बनाम कॉलेजियम की बहस को लेकर भी चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अहम राय दी थी. उनका कहना था कि कॉलेजियम की व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी है. उनका कहना था कि हमने ऐसे कदम उठाए हैं कि कॉलेजियम का सिस्टम पारदर्शी रहे. उनका कहना था कि हम किसी जज को सुप्रीम कोर्ट में लाने की सिफारिश करते हुए यह देखते हैं कि हाई कोर्ट में उसका करियर कैसा था.

अर्णब गोस्वामी को दी थी बेल

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने वरिष्ठ पत्रकार अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर भी बड़ा फैसला सुनाया था. अदालत ने उन्हें बेल दी थी और कहा था कि यह अधिकार है. इसके साथ ही बेंच का कहना था कि निजी अदालतों को ही इस संबंध में फैसला लेना चाहिए. उन्हें बेल की अर्जियों पर समय रहते ही फैसला करना चाहिए.

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