केंद्र सरकार जातीय जनगणना के मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने की कवायद शुरू कर सकती है. इस पर सैद्धांतिक सहमति के साथ आगे का रोडमैप तलाशने का प्रयास सरकार की तरफ से किया जा सकता है. अभी इस मामले में कोई निर्णय नहीं हुआ है, पर सूत्रों ने कहा है कि जातीय जनगणना की मांग के चलते कई तरह की पेचीदगियों को सरकार पहले हल करना चाहती है.
सूत्रों ने कहा कि सत्तारूढ़ भाजपा सैद्धांतिक तौर पर जातीय जनगणना की मांग के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसका रास्ता क्या हो इसे लेकर स्पष्टता अभी बाकी है. एक राय यह है कि एक समिति बनाई जाए, जिसमें सभी दल शामिल हों. इसमें विचार-विमर्श के बाद कोई रास्ता तलाशा जाए. एक बार इस मसले पर आम राय बनने के बाद जनगणना को लेकर भी रास्ता साफ होगा. गौरतलब है कि कोविड के कारण 2021 की प्रस्तावित जनगणना अभी लंबित है. इसे लेकर तैयारी चल रही है, लेकिन यह तय नहीं हुआ है कि जनगणना कब शुरू होगी. उम्मीद जताई जा रही है कि 2025 में इस पर फैसला होगा. एक अधिकारी ने कहा कि देश में एक टाइटल से जुड़ी कई जातियां हैं. एक ही टाइटल के लोगों का अलग-अलग वर्ग से संबंध है. अगर कंप्यूटर टाइटल के हिसाब से गणना करेगा तो लाखों की संख्या में जो जातियां होंगी, उनका सटीक वर्ग पता करना मुश्किल हो सकता है.
2011 की जनगणना में 46 लाख जातियां मिलीं
देश में 1931 में जातीय जनगणना हुई तो कुल जातियों की संख्या 4,147 थी. जब 2011 में जनगणना हुई तो करीब 46 लाख जातियों की संख्या निकली. हालांकि, 2011 की जनगणना के आंकड़े उजागर नहीं किए गए. 1872 से 1931 तक जातिवार आंकड़े भी दर्ज किए गए.
मंडल आयोग की रिपोर्ट 1931 की गणना पर
1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट 1931 की जातीय जनगणना के आधार पर थी. 1941 में भी जाति जनगणना हुई, लेकिन आंकड़े प्रकाशित नहीं हुए. आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो ब्रिटिश शासन वाली जनगणना के तरीके में बदलाव कर दिया गया.
संप्रदाय को लेकर भी सवाल संभव
1961 से 2001 तक की जनगणना में सरकार ने जातिगत जनगणना से दूरी बनाए रखी. 2011 की जनगणना में पहली बार जाति आधारित आंकड़े (सामाजिक आर्थिक जातिगत) भी एकत्र किए गए, लेकिन यह डाटा सार्वजनिक नहीं किया. जनगणना में आगे काफी कुछ नया हो सकता है.