देश में करीब 13.6 करोड़ डीमैट खाताधारकों में से 9.8 करोड़ लोगों ने नॉमिनी का विवरण नहीं दिया है. यानी करीब 73 फीसदी खाताधारक नॉमिनी दर्ज करने से चूक गए हैं. ये आंकड़े बाजार नियामक सेबी ने जारी किए हैं.
सेबी का कहना है कि निवेशकों के इस रवैये से उनके लिए बड़ा जोखिम पैदा हो सकता है. विशेष रूप से 9.51 करोड़ खाता धारकों (69.73) ने जानबूझकर नामांकन न करने का विकल्प चुना है. वहीं, लगभग 2.76 फीसदी निवेशक असमंजस में हैं.
म्यूचुअल फंड की स्थिति वहीं, डीमैट के उलट म्यूचुअल फंड खातों में 86 फीसदी नॉमिनी के विवरण भरे गए हैं. कुल 8.90 करोड़ म्यूचुअल फंड खातों में से केवल छह फीसदी ने नॉमिनेशन न करके बाहर निकलने का विकल्प चुना है, जबकि आठ फीसदी ऐसे हैं, जो इसे लेकर असमंजस में हैं. उन्होंने न नॉमिनी भरा और न बाहर निकलने का विकल्प चुना है.
मुंबई आधारित निवेश फर्म सोल्यूफिन की फाउंडर मोहिनी महादेविया ने ‘मिंट’ को बताया कि नॉमिनी के बिना संबंधित निवेशक के डीमैट खाते तक पहुंचना उसके उत्तराधिकारियों के लिए कठिन हो जाता है. इसके लिए वसीयत या उत्तराधिकार से संबंधित प्रमाणपत्र पेश करने पड़ते हैं.
तीन बार बढ़ चुकी है समय सीमा
इससे पहले सेबी नॉमिनी दाखिल करने की समयसीमा को अब तक तीन बार बढ़ा चुका है. सेबी ने चेतावनी दी थी कि अगर कोई इस प्रक्रिया का पालन नहीं करता है तो उसके डीमैट खाते को निष्क्रिय कर दिया जाएगा. 31 दिसंबर 2023 तक कुछ शेयर ब्रोकरों ने आखिरी तारीख से बचने के लिए बिना अधिक विवरण साझा किए नॉमिनेशन को अपडेट कर दिया था. इसके बाद सेबी ने एक बार फिर समयसीमा को बढ़ाकर 30 जून 2024 कर दिया है.
इसके पीछे की असली वजह
बाजार विश्लेषकों के अनुसार, डीमैट खातों और म्यूचुअल फंड्स के बीच स्थिति के लिए नए शेयर ब्रोकर काफी हद तक जिम्मेदार हैं. ये नॉमिनेशन प्रक्रिया को नकारते हुए दरकिनार कर देते हैं. इसका मतलब हुआ कि वे खाताधारक की सहमति के बिना नॉमिनेशन को अपडेट कर रहे हैं.