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क्या है सर्व पितृ अमावस्या पर श्राद्ध भोजन नियम , इस दिन विदा होते हैं पितर

अश्विन अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या कहते हैं. इस दिन पितृ धरती लोक से विदा लेते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन उन पितरों का भी श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, जिनकी तिथि पता नहीं. इसके अलावा इस दिन सभी पितरों को विदाई दी जाती है. इस दिन क्या नियम मानने चाहिए और क्या दान करना चाहिए यहां जानें

इस दिन भोजन कराने और करने आदि के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए. दरअसल सर्व पितृअमावस्या के दिन सात्विक भोजन बनता है. खाने को पांच जगह निकाला जाता है. पंच महाबली के लिए भोग निकालकर कुशा की अंगूठी पहनकर काले तिल मिलाकर पानी से दक्षिण दिशा में पितरों को तर्पण करते हैं.

इस दिन भोजन शुद्ध बर्तन नहीं तो केले के पत्ते पर कराना चाहिए. भोजन करने से पहले भोजन करने वाले ब्राह्मण को कुछ बोलना नहीं चाहिए और  पितरों के नाम का थोड़ा खाना अपनी थाली में से निकाल कर पहले ही अलग रखना चाहिए, जिसे बाद में गाय को खिलाना चाहिए.

ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पितृ भोजन स्वीकार कर आशीर्वाद देकर विदा होते हैं. जिनके परिवार से उन्हें भोजन नहीं मिलता, वो अतृप्त होकर लौटते हैं. इसलिए पितृों को सर्व पितृ अमावस्या पर विदाई भी दी जाती है और जिन पितरों का श्राद्ध तिथि पता नहीं उनका श्राद्ध किया जाता है. इस दिन ब्राह्मण को पितरों के नाम के कपड़े दक्षिणा में पैसे के अलावा बर्तन, फल, अनाज, मिष्ठान, धोती-कुरता देना चाहिए. अगर माता जी या दादी मां का श्राद्ध कर रहे हैं, तो साड़ी, शृंगार की सामग्री दे सकते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस तिथि पर इन चीजों के दान से व्यक्ति का सौभाग्य बढ़ता है और घर में बरकत आती है.

शाम केसमय जब पितरों को विदा करना हो तो चौमुखा दीपक पीपल के पेड़ के पास या फिर किसी नदी के किनार जलाना चाहिए, जिससे पितर अपनी -अपनी दिशा में वापस लौट जाएं.

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