सोलह कलाओं से पूर्ण, अमृत बरसाता शरद पूर्णिमा का चंद्रमा
जीवन में आनंद, उत्सव और राग की प्रतीक है शरद पूर्णिमा. और ये सब जीवन में तभी आते हैं, जब आप निरोगी हों. शरद पूर्णिमा हमें स्वस्थ और निरोग रखने का दिन है. इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है.
अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों से अमृत बरसता है. इसलिए लोग इस रात्रि को खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं, ताकि उसमें चंद्रमा की सुधामयी किरणों का प्रभाव आ जाए. चंद्रमा का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था. समुद्र के इसी मंथन से देवी लक्ष्मी भी प्रकट हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु का वरण किया था. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था. समुद्र मंथन से उत्पन्न होने के कारण लक्ष्मी और चंद्रमा में भाई-बहन का रिश्ता माना जाता है. परंतु दक्षिण भारत में लक्ष्मी का जन्म फाल्गुन पूर्णिमा के दिन माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आती हैं और धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करनेवालों को अपना आशीर्वाद देती हैं. लोग उनके स्वागत में घरों में दीप जलाते हैं. इसी दिन चंद्रमा अपनी बहन से मिलने पृथ्वी के और निकट आ जाते हैं, लेकिन वे अकेले नहीं आते. अपने साथ अपनी अमृतमयी किरणों का उपहार भी पृथ्वीवासियों के लिए लाते हैं. शरद पूर्णिमा का एक नाम ‘कोजागरी’ पूर्णिमा भी है. कोजागर का अर्थ है—‘जो जाग रहा है.’ इस दिन ‘कोजागर’ यानी रातभर जाग कर व्रत रखा जाता है. इससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं. इसे ‘नवान्न’ पूर्णिमा और ‘कौमुदी’ पूर्णिमा भी कहा जाता है.
शरद पूर्णिमा के दिन ही श्रीकृष्ण ने ‘महारास’ रचाया था, इसलिए इसे ‘रास’ पूर्णिमा भी कहा जाता है. एक कथा है, कृष्ण ने ‘रास’ में सम्मिलित होने के लिए देवी पार्वती को निमंत्रण भेजा. पार्वती ने रास में शामिल होने के लिए भगवान शंकर से आज्ञा मांगी. कृष्ण के इस महारास के प्रति शिव भी मोहित हो गए और उन्होंने भी वहां पार्वती के साथ जाने का निश्चय किया. लेकिन वृंदावन पहुंचने पर, जब उन्हें यह पता चला कि इस महारास में कृष्ण के अलावा अन्य कोई पुरुष शामिल नहीं हो सकता, तो वे एक गोपी का रूप धारण करके उस महारास में शामिल हुए और गोपीश्वर यानी गोपेश्वर महादेव कहलाए. एक मान्यता है कि इस दिन शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ था, इसलिए इसे ‘कुमार’ पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन ही अश्विनी कुमारों ने महर्षि च्यवन को औषधि-ज्ञान दिया था. इस दिन सुयोग्य जीवनसाथी पाने के लिए चंद्रमा की पूजा का विशेष विधान है.