दिमाग में डर बैठा गया कोरोना, तीन साल बाद भी चिंता, अवसाद के लक्षण

कोरोना महामारी की चपेट से दुनिया उबर तो गई लेकिन लोगों को उस वायरस का खौफ अब तक सता रहा है. दूसरे शब्दों में यह कह लें कि कोरोना वायरस लोगों के दिमाग में इस तरह छिपकर बैठा है कि महामारी के तीन साल बाद भी लोग अवसाद और चिंता जैसे हालातों से जूझ रहे हैं. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह खुलासा किया है.
शोध के अनुसार, महामारी की शुरुआत में ही कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर अस्पताल में भर्ती होनेवाले लोगों में स्वास्थ्य संबंधी समस्या अधिक गंभीर है. कुछ रोगियों में 12 महीने बाद गंभीर और नए लक्षण देखे गए. शोधकर्ताओं के अनुसार, लंबे समय तक कोविड से पीड़ित लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हो गया लेकिन अधिकांश में अवसाद, चिंता और थकान के लक्षण कम होने के बजाय और भी खराब हो गए. यह अध्ययन लैंसेट साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित हुआ है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 475 लोगों में लॉन्ग कोविड का अध्ययन किया. ये सभी वैक्सीन उपलब्ध होने से पहले जानलेवा कोरोना वायरस की चपेट में आए थे और अस्पताल में भर्ती हुए थे. उन्होंने पाया कि लोगों के अंदर दिमागी समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं.
भारत में 17 फीसदी मरीजों में अवसाद की समस्या
लंबे समय तक कोरोना झेलने के बाद लोगों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भारत में भी मिली. पिछले साल आईसीएमआर के अध्ययन में पता चला था कि भारत में 17.1 मरीज कोरोना के बाद सुस्ती, सांस फूलना तथा ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई जैसी समस्याओं से जूझ रहे थे. अध्ययन में शामिल किए गए 14,419 मरीज सितंबर 2020 से अस्पताल में भर्ती हुए थे. इन्हें कोरोना के डेल्टा या ओमिक्रॉन वेरिएंट ने शिकार बनाया था.
कई लोगों ने पेशा बदला
अध्ययन के लेखक डॉ मैक्स टैक्वेट ने कहा, ‘हमने पाया कि दो से तीन साल बाद भी लोगों में न्यूरोसाइकियाट्रिक समस्याएं मौजूद थीं. अध्ययन में शामिल चार में से एक ने वायरस की चपेट में आने के बाद अपना पेशा बदल लिया, क्योंकि वे अपनी नौकरी की मांग के अनुसार दिमागी समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं हो पा रहे थे.