दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया से बढ़ते प्रेम संबंधों को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि जब एक 19 वर्ष का लड़का फेसबुक पर किसी लड़की से मित्रता करता है तो वह उससे उसकी उम्र का प्रमाणपत्र नहीं मांग सकता.
पीठ ने यह विचार बलात्कार और बाल यौन शोषण रोकथाम अधिनियम (पॉक्सो) के तहत दर्ज एक मामले के आरोपी को राहत देते हुए व्यक्त किए. न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सोशल मीडिया पर इस तरह के संबंध बनने की एक बाढ़ सी आ गई है. यहां परखना मुश्किल होता है कि दूसरी तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ाने वाला शख्स कितनी उम्र का है. पीठ ने यह भी माना कि जब सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाने वाला खुद प्रोफाइल पर अपनी उम्र 18 वर्ष बताए तो यह अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है कि वह नाबालिग है. यहां मामला साढ़े 16 वर्ष की लड़की से दोस्ती, बलात्कार और बाल यौन शोषण का है. आरोपी की उम्र भी घटना के समय महज 19 साल थी. ऐसे में पीठ ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि आरोपी और पीड़िता दोनों पहले फेसबुक पर दोस्त बने. दोनों उम्र की प्राथमिक दहलीज पर थे. ऐसे में वर्तमान हालात को देखते हुए आरोपी को जमानत दी जा रही है.