वाराणसी. मध्य मार्च से अप्रैल के बीच आसमान एक बेहद चमकीला पिंड नजर आएगा. यह कोई तारा या ग्रह नहीं बल्कि एक धूमकेतु है. अगले कुछ महीनों में यह पृथ्वी के बेहद करीब से गुजरेगा, जिसे नग्न आंखों से देखा जा सकेगा. खगोलशास्त्रित्त्यों में इसे लेकर हलचल मची है. इस धूमकेतु को ‘डेविल’ या ‘दानव’ का नाम दिया गया है. इस नामकरण के पीछे इसका असामान्य वातावरण है.
आकार में एवरेस्ट जितना बड़ा यह धूमकेतु 71 साल में अपनी कक्षा में एक चक्कर पूरा करता है. फिलहाल वह हमारे सौरमंडल में आ चुका है. सूरज के करीब पहुंचने के कारण 100 गुना चमकदार दिख रहा है. वैज्ञानिकों ने बताया कि 15 मार्च के बाद ‘12पी/पॉन्स-ब्रूक्स’ यानी दानव धूमकेतु भारत के पश्चिमी आसमान पर खुली आंखों से भी दिखेगा. आठ अप्रैल को पूर्ण सूर्यग्रहण के समय यह दिन में भी देखा जा सकेगा.
21 अप्रैल को सूर्य से निकटतम दूरी बनारस के एस्ट्रो ब्वॉय वेदांत पांडेय ने बताया कि 21 अप्रैल को डेविल धूमकेतु सूर्य के काफी करीब से गुजरेगा. तब इसकी सूर्य से दूरी 116.8 मिलियन किमी होगी. इसके 42 दिन बाद यानी जून के पहले सप्ताह में यह पृथ्वी के करीब से फिर गुजरेगा. तब दक्षिणी गोलार्ध से देखा जा सकेगा. बीएचयू के खगोल विज्ञानी डॉ. अभय कुमार ने बताया कि दुनियाभर के वैज्ञानिक ‘12पी/पॉन्स-ब्रूक्स’ यानी दानव धूमकेतु पर नजर रखे हुए हैं.
सबसे अशांत धूमकेतु का दर्जा इस धूमकेतु को सबसे अशांत धूमकेतु का दर्जा दिया गया है. इसका कारण इसमें होने वाले बड़े विस्फोट हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी सतह के नीचे ज्वलनशील गैसों का उच्च दबाव क्षेत्र बना हुआ है.
212 वर्ष पहले खोजा गया
दानव धूमकेतु की खोज 212 साल पहले यानी 1812 में फ्रांस की मार्सेय वेधशाला से की गई थी. फ्रांसिसी खगोलशास्त्रत्त्ी जीन लुइस पॉन्स और ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम रॉबर्ट ब्रुक्स ने इसे पहचाना और पी-12 नाम दिया. दोनों खोजकर्ताओं का नाम इसमें जोड़ा गया और तब से यह 12पी/पॉन्स-ब्रूक्स’ के नाम से जाना जाता है.
विस्फोटों से मिला नाम
दानव या डेविल धूमकेतु नाम पड़ने के पीछे इस ‘12पी/पॉन्स-ब्रूक्स’ पर होने वाले विस्फोटों को कारण बताया जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पर कुछ महीनों के अंतराल पर ज्वालामुखी फटते रहते हैं, जिसके कारण इससे धूल और गैस का गुबार निकलता है. सामने की तरह दिखने वाले दो सींग इसकी पहचान हैं.