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भारत अंटार्कटिका में विनियमित पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम कर रहा है. पर्यटकों की संख्या में लगातार वृद्धि से श्वेत महाद्वीप में संवेदनशील पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचने का खतरा है.
भारत का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय अंटार्कटिका के लिए सर्वोच्च शासी निकाय ‘अंटार्कटिक संधि सलाहकार बैठक’ (एटीसीएम) और पर्यावरण संरक्षण समिति (सीईपी) बैठक की मेजबानी कर रहा है. केरल के कोच्चि में 20 से 30 मई को 46वीं एटीसीएम और सीईपी की 26वीं बैठक आयोजित की जाएगी. इसमें 60 से अधिक देशों के 350 से अधिक प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद है. बैठक में दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में अनुसंधान में लगे देश भविष्य की योजनाएं, वैज्ञानिक गतिविधियों के परिणाम साझा करेंगे.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. रविचंद्रन ने कहा कि समस्या यह है कि अंटार्कटिका में पर्यटन को ठीक से विनियमित नहीं किया गया है. इसलिए इस साल इसके नियमन पर चर्चा होगी. रविचंद्रन ने अंटार्कटिका में आम जनता के लिए भारतीय अनुसंधान केंद्रों की यात्रा की सुविधा प्रदान करने की योजना का भी संकेत दिया. रविचंद्रन ने अनियमित पर्यटन के साथ वर्तमान चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत समान विचारधारा वाले अन्य देशों के साथ अंटार्कटिका में विनियमित पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहा है.
गोवा से दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन और वहां से अंटार्कटिका तक जहाज पर यात्रा करने वाले शोधकर्ताओं के लिए अंटार्कटिका की यात्रा का अनुमानित खर्च प्रति व्यक्ति एक करोड़ रुपये है.
भारत के दो अनुसंधान केंद्र
राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र के निदेशक थंबन मेलोथ ने कहा कि भारत अंटार्कटिका में दो अनुसंधान केंद्र- मैत्री और भारती संचालित करता है. यहां देशभर के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक साल भर शोध करते हैं. अंटार्कटिका में अनुसंधान अड्डों को बनाए रखने के लिए हर साल करीब 200 करोड़ खर्च होते हैं.