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वट सावित्री व्रत कल, सुहाग की रक्षा के लिए होगी पूजा, पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजा-विधि नोट कर लें

सनातन धर्म में वट सावित्री का व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है. वेद, पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास में पड़ने वाली अमावस्या महत्वपूर्ण है. इस बार अमावस्या छह जून गुरुवार को है. इसलिए वट सावित्री व्रत गुरुवार को मनाया जाएगा. इस दिन किया गया व्रत पूजा-पाठ, स्नान-दान इत्यादि का फल अक्षय माना गया है. गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट वृक्ष की पूजा करती है. इसके साथ ही इस दिन शनि जयंती भी पड़ रही है. इस दिन वट सावित्री व्रत के साथ शनि जयंती भी मनायी जाएगी. शनि दोष से मुक्ति और धन-समृद्धि प्राप्त करने लिए यह खास दिन है.

अमावस्या की तिथि और शुभ मुहूर्त: आचार्य पप्पू पांडेय ने बताया कि अमावस्या की तिथि बुधवार को संध्या छह बजकर 58 मिनट से गुरुवार की शाम पांच बजकर 35 मिनट तक चलेगी. मां आशापुरी मंदिर के पुजारी पंडित पुरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर श्रद्धालु स्नान करें. गंगा स्नान करेंगे तो बेहतर होगा. नहीं तो घर में ही नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डालकर नहा लें. इसके बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य दें. इस दिन दान-पुण्य भी करना चाहिए. पितरों की शांति के लिए इस दिन तर्पण, श्राद्ध आदि कर सकते हैं. ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद सदा मिलेगा. वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ पर गाय का शुद्ध दूध जल में मिलाकर चढ़ाना चाहिए. ऐसा करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है. ऐसा कहा जाता है कि बरगद के पेड़ में भगवान विष्णु, शिवजी और ब्रह्मदेव का वास होता है. ऐसे में अगर बरगद के पेड़ की पूजा विधि अनुसार की जाए, तो जीवन की सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं, क्योंकि यह वृक्ष साक्षात ईश्वर का प्रतीक माना जाता है.

सौभाग्य की होती है वृद्धि: इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखकर बरगद की पूजा करती हैं. इस बार धृति योग में वट सावित्री की पूजा होगी. अमावस्या के दिन पितरों को जल देने से उन्हें तृप्ति मिलती है. महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर वट सावित्री व्रत के दिन तीर्थस्थलों पर पिंडदान करने का विशेष महत्व है. इसी दिन शनिदेव का जन्म हुआ था. वैदिक ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को कर्म प्रधान देवता माना गया है. यह व्यक्ति को उनके अच्छे और बुरे कर्मों के आधार पर फल देते हैं. इस दिन उनकी पूजा करने, छाया दान करने तथा शनि का दान करने से कुंडली से शनि दोष, महादशा, ढैया और साढ़ेसाती की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है.

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