भाई दूज कल, जानें भाई को तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त व पूजा विधि
भैया दूज त्यौहार हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इसे यम द्वितीया भी कहते हैं. इस दिन बहनें अपने भाइयों के लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं. इससे भाइयों की लंबी उम्र होती है. भाई-बहन दोनों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है. यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीत है.
पुजारी डा उपेंद्र मिश्रा के मुताबिक, पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया दो नवंबर को रात 8:22 बजे से आरंभ हो रही है. मान्यता है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम का अतिथि सत्कार के साथ भोजन कराया था. तब यमराज ने यह वरदान दिया था कि इस दिन यमुना में स्नान करके यम का जो पूजन करेगा, उसे मृत्यु के बाद यमलोक जाना नहीं पड़ेगा. यमुना को सूर्य की पुत्री माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन यमुना में स्नान करना, यमुना और यमराज की पूजा करने का विशेष महत्व है.
भाई दूज कल: भाई और बहन के प्रेम व स्नेह का प्रतीक भाई दूज रविवार को मनाया जाएगा. द्वितीया तिथि की शुरुआत शनिवार रात 8 बजकर 22 मिनट पर हो रही है, जबकि रविवार की रात 11 बजकर 6 मिनट पर द्वितीया तिथि खत्म होगा.
भाई को तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त: भाई दूज का पर्व रविवार को मनाया जाएगा. पंडितों के मुताबिक भाई दूज का समय दिन में 11 बजकर 45 मिनट से 1 बजकर 30 मिनट तक शुभ रहेगा.
ऐसे करें पूजन: भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के इस उत्सव का बड़ा महत्व है. बहने भैया द्वितीया के दिन परंपरा के अनुसार अपने घर आंगन में गोबर से यमुना, यम और यमीन की आकृति बनाती हैं फिर इस पर समाज से गोधन कुटा जाता है. गोधन कुटकर भाई को बजरी खिलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इससे भाई वज्र जैसा मजबूत हो जाता है. बहने अपने भाइयों को लोकगीत के माध्यम से पहले खूब कोसती हैं. भला बुरा कहती है. फिर जीभ पर रंगेनी का कांटा चुभोती है और अपनी गलती के लिए भगवान से माफी मांगती हैं. मान्यता है की इस दिन भाइयों को गाली व श्राप देने से मृत्यु का भय नहीं रहता है और आयु बढ़ती है.
भैया दूज की कथा: सनत्कुमार संहिता में उद्धृत कथा के अनुसार, भैय्या दूज का आरंभ सूर्य पुत्र यमराज एवं उनकी प्रिय बहन यमुना से जुड़ा हुआ है. पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, यमुना अपने भाई यमराज को अपने घर आने का लगातार न्यौता दिया करती थी, लेकिन समयाभाव के कारण यमराज उपस्थित नहीं हो पा रहे थे. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को यमुना देवी ने भोजन की व्यवस्था कर अपने भाई यमराज को आने का हठ कर दिया. बहन के लगातार दुराग्रह पर मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंचे तो उनका विभिन्न उपकरणों से अलंकृत कर नाना प्रकार के भोज्य पदार्थों से सत्कार किया. बहन के सत्कार से अति प्रसन्न यमराज ने बहन से उपहार स्वरूप वर मांगने का आग्रह किया. अपने भाई के आग्रह पर यमुना ने प्रति वर्ष इसी तिथि को उनके घर आने, सभी नरक वासियों को नरक से मुक्त करने तथा आज की तिथि को बहन के हाथ से भोजन करने वालों की सभी अभिलाषाएं पूरी करने का वरदान मांगा. बहन के सत्कार से प्रसन्न यमराज ने उक्त वर देने के साथ ही इस तिथि विशेष को यमुना नदी में स्नान कर पितरों को जलांजलि देने के साथ ही बहन के घर पहुंचकर निमंत्रण लेने एवं भोजन करने वालों को सदा के लिए नरक से मुक्ति देने का वरदान भी दिया. यमराज द्वारा दिए गए इस वरदान की परंपरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है. वरदान में इस बात का उल्लेख किया गया है कि छोटी बहन के अभाव में बड़ी बहन अथवा सगे-संबंधियों में कोई भी बहन हो तो उस तिथि को उसी के घर में भोजन करने से यह फल अवश्य मिलेगा. प्राचीन काल की इस परंपरा को लोग श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाते आ रहे हैं.