छत्तीसगढ़

Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत आज, जानें पूजन का सबसे शुभ समय, पढ़ें वट सावित्री व्रत की कथा

अखंड सुहाग के लिए सुहागिन महिलाएं आज 26 मई 2025, सोमवार को वट सावित्री की पूजा करेंगी. वट वृक्ष को धागे से बांधकर पति की लंबी आयु के लिए वरदान मांगेंगी. यह पर्व उत्तर भारत में बड़े ही धूमधाम, आस्था और भक्ति के साथ मनाया जाता है. ज्योतिषाचार्य पीके युग बताते हैं कि पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं भरणी व कृतिका नक्षत्र और शोभना व अतिगंड योग में पूजन करेंगी. इस दौरान महिलाएं त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) की पूजा करती हैं.

मान्यता है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) बरगद के पेड़ में निवास करते हैं. बरगद के पेड़ के नीचे ही सावित्री ने यमराज का सामना कर पति की जान बचायी थी. ज्योतिषाचार्य के अनुसार सोमवार को अमावस्या होने के कारण इस दिन सोमवती अमावस्या का पुण्य भी व्रती महिलाओं को प्राप्त होगा. इस व्रत को करने से सुहागिनों के पतियों के अशुभ और हानिकारक ग्रह शांत होते हैं.

पूजन सामग्री लिस्ट- वट सावित्री व्रत में पूजन के लिए सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, धूप, दीप, घी, बांस का पंखा, लाल कलावा, सुहाग का समान, कच्चा सूत, बरगद का फल, जल भरने के लिए कलश और थाल आदि की जरूरत पड़ती है.

वट सावित्री व्रत मुहूर्त अमावस्या तिथि प्रारंभ: 26 मई को दोपहर 12: 11 बजे से अमावस्या तिथि समाप्त: 27 मई को सुबह 08: 31 मिनट पर कृत्तिका नक्षत्र: 26 मई सुबह 8:23 से 27 मई सुबह 5:32 बजे तक.

वट सावित्री व्रत पर पूजन का शुभ मुहूर्त- सोमवार सुबह 11.20 बजे से 12.14 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में पूजा का सबसे बेहतर समय है. पूजा के बाद पति को पंखा झेलकर कष्टों के हरण की कामना की जाती है.

यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों का मुख्य त्यौहार माना जाता है. यह व्रत मुख्यत: ज्येष्ठ कृष्ण की अमावस्या को किया जाता है. इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है. इस व्रत की कहानी सत्यवान और सावित्री से जुड़ी है.

एक समय मद देश में अश्वपति नाम का राजा था. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए अपनी के साथ सावित्री देवी का व्रत और पूजन किया और पुत्री होने का वर मांगा. इस पूजा के बाद उनके यहां सर्वगुण संपन्न कन्या हुई, जिसका नाम सावित्री रखा गया. सावित्री जब विवाह के योग्य हुईतो राजा ने उससे अपना वर चुनने को कहा. एक दिन महर्षि नारज और अशवपति एँ, तभी सावित्री अपने वर का चयन करके लौची. नारद जी ने वर के बारे में पूछा तो सावित्री ने बताया कि राजा द्यम्रुत्य सेन जिनका राज्य हर लिया गया था, वो अपनी पत्नि और पुत्र के साथ वन में भटक रहे थे, उनके पुत्र सत्यवान को मैनें अपने वर के तौर पर चुन लिया है. नारद जी ने ग्रहों की गणनाओं को करके कहा कि राजा तुम्हारी पुत्री ने सुयोग्य वर को चुना है. सत्यवान पुक्ष धर्मात्ना और गुणी है. लेकिन उसमें एक भारी दोष हैष वह अल्पायु है और एक वर्ष के बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी.

नारद जी की ऐसी भविष्यवाणी सुनकर उन्होंने अपनी कन्या से दूसरा वर चुनने के लिए कहा. इस पर सावित्री ने कहा कि आर्य कन्या एक बार अपने वर का चयन करती हैं और मैं सत्यवान का चयन कर चुकी हूं और किसी और को अपने ह्दय में स्थान नहीं दे सकती हूं.

सावित्री ने आगे कहा-पिताजी अब मैं सत्यवान को अपना पति मान चुकी हूं. सावित्री ने सत्यवान की मत्यु का समय जान लिया.राजा ने सत्यवान के साथ सावित्री का विवाह कर दिया. वह वन में अपने सास ससुर की सेवा करते हुएरहने लगी? जब सावित्री 12 साल की हुईतो उसे नारद जी का वचन परेशान करने लगा. वह उपवास करने लगी और पितरों का पूजन किया. वह रोज की तरह सत्यवान के साथ लकड़ियां काटने वन में गई.

सत्यवान जैसे ही पेड़ पर लकड़ी काटने गया, उसके सिर में पीड़ा होने लगी. वह नीचे आ गया और सावित्री ने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया. सावित्री का मन डर से कांप रहा था, तभी उसने सामने से यमराज को आते देखा. यमराज सत्यवान की आत्मा को लकर चल दिए और सावित्री भी पीछे-पीछे चल दी? यमराज ने उसे वापस जाने को कहा. लेकिन सावित्री ने कहा कि पत्नी की सार्थकता इसी में है कि वो पति की छाया की तरह सेवा करे. उसने कहा कि इनके पीछे जाना ही मेरा स्त्रीधर्म है. सावित्री के धर्मयुक्त वचनों को सुनकर यमराज प्रसन्न हो गए.

यमराज ने पीछे मुड़कर देखा और सावित्री से कहा-आगे मत बढ़ो, तुम्हें मुंह मांगा वर दे चुका हूं. यमराज ने कहा कि अपने पति के प्राणों के अलावा तुम कुछ भी वरदान मांग सकती हो. इस पर सावित्री ने कहा कि मुझे मेरे सास-ससुर की आंखों की ज्योति दे दो. इसके बाद भी उसने हार नहीं मानी और फिर यमराज के साथ चल दी. यमराज के समझाने पर बोली की पति के बिना नारी जीवन की कोई सार्थकता नहीं है? पति के साथ जाना ही मेरा कर्तव्य है. सावित्री की निष्ठा देखकर यमराज बोले तुम कुछ भी वर मांग लो, लेकिन यह विधि का विधान है और इस पर सावित्री ने कहा कि महाराज आप मुझे 100 पुत्रों की मां होने का वरदान दें. इस पर यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ गए.

इस पर यमराज ने सावित्री से कहा कि अब आगे मत बढ़ों, तुम्हें मुंहमागा वरदान दे चुका हूं. इस पर सावित्री ने कहा, आपने मुझे वरदान तो दे दिया लेकिन आप मुझे बताएं कि बिना पति के मैं 100 संतानों की मां कैसे बनूगी. मुझे मेरा पति वापस मिलना ही चाहिए. यमराज ने सावित्री की निष्ठा और पति भक्ति और शक्तिपूर्णवचनों के कारण सत्यवान के प्राण वापस कर दिए.

इसके बाद सावित्री उसी वटवृक्ष के पास गई, उसकी परिक्रमा की और उसके पति के प्राण वापस आ गए हैं. उसके सास-ससुर की आंखे भी वापस आ गईं. यमराज के आशीर्वाद से सावित्री सौ पुत्रों की मां बनी. जैसे सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों की रक्षा की वैसे सभी के पति के प्राणों की रक्षा हो और सभी का सुहाग अमर रहे. बोलो सत्यवान सावित्री की जय

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