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पढ़ाने से पहले चैप्टर के फोटो भेज रहे शिक्षक, ताकि बिना पुस्तकों के पढ़ाई हो पूरी

रायपुर. शिक्षकों ने कुछ चैप्टर के फोटो खिंचकर भेजे है पढ़ लो, कल स्कूल में इसी चैप्टर की पढ़ाई होगी…। कुछ ऐसा ही हाल राज्य में देखने को मिल रहा है। जहां स्कूलों में सभी विषयों की किताबें नहीं पहुंचने के कारण शिक्षक अगले दिन पढ़ाने वाले चैप्टर के फोटो पैरेंट्स को भेज रहे हैं और बच्चे उस चैप्टर की पढ़ाई मोबाइल में करके स्कूल पहुंच रहे हैं। ऐसा तब है, जब राज्य में स्कूल खुले हुए दो माह बात बीत चुके हैं। सामान्य सरकारी स्कूल के साथ ही आत्मानंद स्कूलों में भी यही हाल है। इसके साथ ही प्राइवेट स्कूल में प्राइवेट पब्लिशर की किताबों से पढ़ाई कराने की मजबूरी है।

शिक्षा विभाग कहती है कि स्कूल को जिस बोर्ड से मान्यता मिली है, उसी बोर्ड से संबंधित पाठ्यपुस्तक को पठन पाठन अनिवार्य है, लेकिन पुस्तकें अभी तक स्कूल तक नहीं पहुंचने के कारण सरकारी स्कूल और प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट के साथ ही अभिभावकों और बच्चों को भी काफी समस्या हो रही है। इससे बच्चों की पढ़ाई में काफी नुकसान हो रहा है। इसी समस्या को देखते हुए प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट अब इस साल भी 5वीं और 8वीं की बोर्ड परीक्षा में शामिल न होने की बात विभाग से कह दी है। राज्य में लगभग 45 हजार सरकारी और प्राइवेट स्कूल संचालित हो रहे हैं।

रायपुर के सरकारी स्कूल के कुछ शिक्षकों ने बताया कि अभी पहली कक्षा, दूसरी, छठवीं की दो-दो किताबें आई हैं। तीसरी की एक भी किताब नहीं आई है। 5वीं और 8वीं की कुछ किताबें नहीं आई हैं। कक्षा में चैप्टर पढ़ाने के साथ ही सवाल-जवाब भी लिखवा रहे है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि सभी विषयों की फोटोकॉपी कराने के लिए बच्चों से नहीं कहा जा सकता।

केंद्रीयकृत परीक्षाओं को ऐच्छिक करने की मांग

छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन ने इस वर्ष भी केंद्रीयकृत परीक्षाओं को ऐच्छिक करने की मांग की हैं। क्योंकि अभी तक पांचवीं और आठवीं की किताबें स्कूल नहीं पहुंच पाई हैं। एसोसिएशन ने इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग को पत्र भी लिखा है।

उन्होंने कहा है कि पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन बीच सत्र में केंद्रीयकृत परीक्षाओं को थोपे जाने के विरुद्ध उच्च न्यायालय गया था, जिसमें पांचवी में आठवीं की परीक्षाओं को वैकल्पिक कर दिया गया था। इस वर्ष भी अशासकीय स्कूलों में केंद्रीयकृत परीक्षाओं को ऐच्छिक किया जाए, क्योंकि नए सत्र को शुरू हुए 2 महीने गुजर जाने के बाद भी अशासकीय स्कूलों को आज की तारीख तक किताबें नहीं मिली हैं। ऐसे में किसी भी विद्यार्थी को जबरदस्ती परीक्षाओं में शामिल करना विद्यार्थियों के साथ अन्याय होगा।

हिंदी, अंग्रेजी, पर्यावरण की किताबें नहीं

जानकारों ने बताया कि प्राइवेट स्कूलों में भी तक पांचवीं और आठवीं में कई विषयों की किताबें नहीं मिली हैं। इसके कारण स्कूल परीक्षाओं के अनुरुप छात्र-छात्राओं को पढ़ा पाने में असमर्थ है। प्राइवेट स्कूलों के पांचवीं कक्षा की हिंदी माध्यम में छत्तीसगढ़ी व संस्कृत के साथ ही अंग्रेजी और पर्यावरण अध्ययन नहीं मिली है। वहीं, आठवीं की संस्कृत की किताबें नहीं आई है। वहीं, सरकारी स्कूल की बात की जाए तो 6वीं की संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, सातवीं की संस्कृत व हिन्दी, 8वीं में संस्कृत, हिन्दी की किताब नहीं पहुंची है। ऐसे ही सभी लगभग सभी क्लास में कोई न कोई किताब अब तक स्कूल नहीं पहुंची है।

रायपुर के सरकारी स्कूल के कुछ शिक्षकों ने बताया कि अभी पहली कक्षा, दूसरी, छठवीं की दो-दो किताबें आई हैं। तीसरी की एक भी किताब नहीं आई है। 5वीं और 8वीं की कुछ किताबें नहीं आई हैं। कक्षा में चैप्टर पढ़ाने के साथ ही सवाल-जवाब भी लिखवा रहे है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि सभी विषयों की फोटोकॉपी कराने के लिए बच्चों से नहीं कहा जा सकता।

पुराने यूडाइस के हिसाब से मिल रहीं किताबें

जानकारी के अनुसार, पाठ्यपुस्तक निगम की ओर से पिछले साल के यूडाइस के डाटा के अनुसार ही स्कूलों को किताबें दी जा रही हैं। यानीकि यदि पिछले साल किसी स्कूल की किसी क्लास में 50 बच्चे थे तो 50 बच्चों के हिसाब से ही किताबें दी जा रही हैं। वहीं, हर क्लास में बच्चों की संख्या भी बढ़ गई है, जिसके कारण भी स्कूल वालों को काफी समस्या हो रही है।

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