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एयर इंडिया हादसे के अकेले बचे यात्री का दर्द; घर से बाहर नहीं निकलता

12 जून को गुजरात के अहमदाबाद से लंदन के गैटविक के लिए उड़ान भरने वाला एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान टेकऑफ के कुछ ही मिनटों बाद हादसे का शिकार हो गया था। इस दर्दनाक दुर्घटना में 242 में से 241 लोग मारे गए, जिनमें कई बच्चे और चालक दल के सदस्य भी शामिल थे। लेकिन एक व्यक्ति- विश्वासकुमार रमेश चमत्कारिक रूप से बच गए। दुनिया ने इसे चमत्कार कहा, मगर रमेश के लिए यह अब एक जीता-जागता दुःस्वप्न बन चुका है। इस हादसे में उन्होंने अपने भाई अजयकुमार को खो दिया और साथ ही अपने मानसिक संतुलन, व्यवसाय और सामान्य जीवन की उम्मीद को भी खो दिया है।

मेरे चारों ओर लाशें थीं- अस्पताल से याद करते हुए बोले रमेश

भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक रमेश ने हाल ही में स्काई न्यूज को दिए इंटरव्यू में अपनी जिंदगी का वो काला अध्याय खोला, जो PTSD यानी पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की गिरफ्त में कैद हो गया है। वे कहते हैं कि मैं पूरी तरह टूट चुका हूं। मेरा भाई मेरा सहारा था। अब मैं अकेला हूं। रमेश की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक परिवार की टूटती हुई दुनिया की है।

रमेश सीट नंबर 11A, यानी इमरजेंसी गेट के पास बैठे थे। विमान के क्रैश होने के बाद किसी तरह वे बाहर निकलने में सफल रहे, लेकिन उनके भाई की मौत मलबे में हो गई। दुर्घटना के बाद अस्पताल के बिस्तर से DD इंडिया को दिए गए बयान में उन्होंने कहा था कि जब मैं उठा, मेरे चारों तरफ लाशें थीं। मैं बस अपने भाई को ढूंढ रहा था। दुर्भाग्य से, रमेश के भाई अजयकुमार गुजराती भाषी इस परिवार के लिए सब कुछ थे।

अब कुछ करने की इच्छा नहीं रहती- रमेश

रमेश का दिन अब एकाकीपन की चारदीवारी में कटता है। वे घर से बाहर नहीं निकलते। ज्यादातर समय बेडरूम में अकेले बैठे रहते हैं, कुछ नहीं करते। इंटरव्यू में रमेश की आवाज टूटी हुई थी। वे बार-बार चुप हो जाते, कभी शब्दों में रुक जाते। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे हादसे के बारे में बात कर सकते हैं, तो वे सिर्फ इतना बोले- विमान के बारे में बात करना बहुत दर्दनाक है। उनकी पत्नी और चार साल के बेटे दिवांग के साथ वे अब ब्रिटेन के लेस्टर शहर में रहते हैं। मगर वे अब शायद ही घर से बाहर निकलते हों। रमेश कहते हैं, ‘मैं बस अपने कमरे में बैठा रहता हूं, कुछ नहीं करता। मैं बस अपने भाई के बारे में सोचता हूं… मेरे लिए वो सब कुछ था।’

शारीरिक और मानसिक दोनों दर्द से जूझ रहे हैं

रमेश अभी भी घुटने, कंधे और पीठ के दर्द से परेशान हैं। उनके बाएं हाथ में जलन के निशान अब तक ठीक नहीं हुए हैं। उन्होंने बताया कि अब नहाने तक में पत्नी को मदद करनी पड़ती है। उनका छोटा बेटा दिवांग अभी ठीक है, लेकिन रमेश कहते हैं कि वे उससे ‘ठीक से बात नहीं कर पाते।’ जब उनसे पूछा गया कि क्या दिवांग उनके कमरे में आता है, तो उन्होंने सिर हिला कर ‘ना’ कहा।

आर्थिक संकट: हादसे ने खत्म कर दिया कारोबार

रमेश और उनके भाई अजयकुमार ने मिलकर भारत में एक फिशिंग बिजनेस शुरू किया था। इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी बचत लगा दी थी और अकसर भारत-यूके के बीच यात्रा करते थे। लेकिन हादसे के बाद कारोबार ठप पड़ गया है। लेस्टर के सामुदायिक नेता संजीव पटेल और रमेश के सलाहकार रैड सिगर के अनुसार, अब रमेश का परिवार किसी भी आय स्रोत के बिना है।

एयर इंडिया की ओर से 21 लाख रुपये की अंतरिम सहायता

एयर इंडिया ने रमेश को 21,500 यूरो (करीब 21.9 लाख रुपये) की अंतरिम राहत राशि दी है। यह राशि अंतिम मुआवजा तय होने से पहले दी जाने वाली अस्थायी मदद होती है। हालांकि, सिगर और पटेल का कहना है कि यह रकम रमेश की जरूरतों के मुकाबले बहुत कम है। उन्होंने कहा, ‘यह रकम तो बस सतह को छूती है। रमेश को स्कूल जाने वाले बेटे के लिए ट्रांसपोर्ट, भोजन, मेडिकल और मानसिक सहायता जैसी बुनियादी मदद चाहिए।’ वे चाहते हैं कि एयर इंडिया के सीईओ कैंपबेल विल्सन खुद रमेश और अन्य पीड़ित परिवारों से मिलें, उनकी बातें सुनें और इंसानियत के तौर पर संवाद करें।

एयर इंडिया की प्रतिक्रिया

टाटा ग्रुप के प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी रमेश और अन्य परिवारों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह समझती है। प्रवक्ता ने कहा कि हम इस त्रासदी से प्रभावित सभी परिवारों के प्रति गहरी संवेदना रखते हैं। हमारी प्राथमिकता है कि रमेश को हर संभव सहायता दी जाए। टाटा ग्रुप के वरिष्ठ अधिकारी लगातार परिवारों से मिल रहे हैं और रमेश के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात का प्रस्ताव दिया गया है।

हादसे में कुल 260 लोगों की मौत

इस भीषण दुर्घटना में विमान के 241 यात्रियों और चालक दल के सदस्यों के अलावा जमीन पर मौजूद 19 लोग भी मारे गए थे, जब विमान एक मेडिकल हॉस्टल बिल्डिंग से टकरा गया था। विश्वासकुमार रमेश के लिए यह जीवनभर की लड़ाई है- न केवल शरीर के घावों को भरने की, बल्कि उस मानसिक सन्नाटे से बाहर आने की, जो हर पल उन्हें उस भयावह दिन की याद दिलाता है।

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