
ग्लेशियर (हिमनद) झीलों से आने वाली बाढ़ की वजह से भारत समेत दुनिया के डेढ़ करोड़ लोगों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है. ब्रिटेन के न्यू कैसल विश्वविद्यालय में किए गए शोध के अनुसार इनमें सबसे ज्यादा संख्या भारत के लोगों की है, जहां तीस लाख लोगों का जीवन ग्लेशियर से आने वाली बाढ़ के कारण खतरे में है. ग्लोबल वार्मिंग को लेकर वैज्ञानिकों चिंता जताई है. यह रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशंस नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है.
चार देश बुरी तरह प्रभावित होंगे न्यूकैसल विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट के एक छात्र और इस शोध के प्रमुख लेखक कैरोलिन टेलर ने अपनी टीम के साथ ग्लेशियर झीलों की बाढ़ से सबसे ज्यादा खतरे में आने वाले दुनिया के चार देशों को भी चिह्नित किया है, जिनमें भारत, पाकिस्तान, पेरू और चीन शामिल हैं. शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत और पाकिस्तान में सबसे ज्यादा खतरा 30 लाख और 20 लाख लोगों पर है, जबकि आइसलैंड में सबसे कम 260 लोगों पर खतरा है.
तीस वर्षों में ग्लेशियर झीलें कई टुकड़ों में बंट गईं रिपोर्ट के अनुसार, उपग्रह द्वारा साल 2020 में किए गए अध्ययन में बताया गया है कि 30 वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग 50 प्रतिशत तक बढ़ गई, जिसके कारण दुनिया भर में फैले ग्लेशियर के रूप में जमी झीलें टुकड़ों में बंट गईं. पूर्व औद्योगिक काल से अब तक धरती का तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से दुनिया में पहाड़ी इलाकों में गर्मी दोगुनी बढ़ गई.
अध्ययन के मुताबिक, करीब 7000 से ज्यादा ग्लेशियर पाकिस्तान के हिमालय, हिंदूकुश और काराकोरम पहाड़ी की श्रृंखलाओं में मौजूद हैं. 20 लाख लोग पाकिस्तान के हैं, जिन पर ग्लेशियर की बाढ़ का खतरा सबसे ज्यादा है. यहां की स्थिति को लेकर वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है.
शोधकर्ताओं के अनुसार, जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती है, उतनी ही तेजी से ग्लेशियर पिघलते हैं और पिघला हुआ पानी ग्लेशियर के आगे जमा होकर झील का रूप ले लेता है. उनके अनुसार, ये झीलें अचानक फट सकती हैं और पानी काफी तेजी से बहते हुए 120 किलोमीटर से भी अधिक के क्षेत्र को अपनी जद में ले सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसे में यह बाढ़ काफी विनाशकारी होती है और संपत्ति, बुनियादी ढांचे और कृषि भूमि के साथ-साथ लोगों की जान भी ले सकता है. बता दें कि फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली जिले में आई बाढ़ इस आपदा का नतीजा थी, जिसमें 80 लोगों की जान चली गई थी और कई लापता हो गए थे. शोध के अनुसार, 1990 से जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर की झीलों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है.
1,089 ग्लेशियर घाटी की पहचान
शोधकर्ताओं की टीम ने दुनिया में 1,089 ग्लेशियर झील की घाटी की पहचान की है, जिनके 50 किलोमीटर के दायरे में लोग निवास करते हैं. साथ ही शोधकर्ताओं ने इन इलाकों में रहने वाले लोगों की संख्या पर भी गौर किया. इसके परिणास्वरूप यह पता चला कि 1.5 करोड़ लोग जो ग्लेशियर की झील के पास 50 किलोमीटर के दायरे में रहते हैं.
दो लाख से ज्यादा हिमनद धरती पर
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि भले ही ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रोक दिया जाए, इसके बावजूद धरती के दो लाख 15 हजार ग्लेशियर में से आधे और उनके द्रव्यमान का एक-चौथाई हिस्सा इस सदी के अंत तक पिघल जाएंगे. इस बारे में कई वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पेरिस समझौते के लक्ष्य से भी परे है. पूर्व में किए गए शोध के मुताबिक पिछली सदी में वैश्विक समुद्र के जल स्तर का एक-तिहाई हिस्सा ग्लेशियर के पिघलने से आया है.