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स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों को परेशान कर रहीं बड़ों की बीमारी

कोरोना महामारी के दौरान बच्चों में स्मार्टफोन और टीवी की लत बढ़ी है. स्क्रीन टाइम बढ़ने के कारण बड़ों की बीमारियां बच्चों को परेशान कर रही हैं. सर्वाइकल समेत कमर और सिर दर्द के मामले कई गुना बढ़ गए हैं.

विशेषज्ञों के मुताबिक, लगातार गलत मुद्रा में बैठने और लेटने से ये समस्याएं बढ़ी हैं. शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान नहीं देने से अस्पतालों में आए दिन ऐसे केस पहुंच रहे हैं. सतर्कता नहीं बरती तो भविष्य में और ज्यादा स्थिति खराब हो सकती है.

आमतौर पर सर्वाइकल, कमर और सिरदर्द के मामले बड़ों में ज्यादा सामने आते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के बाद अब बच्चों में भी यह बीमारियां देखी जा रही हैं. दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों में इस तरह के केस बढ़े हैं. सफदरजंग अस्पताल के हड्डी रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अरुण आशीष पांडे का कहना है कि कोरोना काल के दौरान बच्चे स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे थे. वे सही मुद्रा में नहीं बैठते, लगातार गर्दन झुकाकर कई घंटों तक फोन चलाते हैं, ऐसे में सर्वाइकल जैसी बीमारियां उनमें बढ़ने लगी हैं.

दिल्ली के आकाश अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. आशीष चौधरी ने बताया कि उनके अस्पताल में गर्दन और कमर दर्द या गलत मुद्रा से जुड़ी समस्या वाले मरीजों में 35 से 40 फीसदी संख्या किशोरों की है. इनमें भी 10 से 15 साल तक के बच्चे ज्यादा हैं. स्मार्टफोन की की वजह से बच्चों की संख्या करीब पांच से छह गुना बढ़ी है.

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के चिकित्सा निदेशक और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुपम सिब्बल कहते हैं कि न सिर्फ शारीरिक बीमारियां बल्कि बच्चों में स्मार्टफोन की लत और बाहर की शारीरिक गतिविधियों के न होने का असर मानसिक सेहत पर भी पड़ रहा है.

गर्दन और कंधे में झनझनाहट डॉ. आशीष चौधरी ने बताया कि गर्दन झुकाकर मोबाइल चलाने से गर्दन और रीढ़ की हड्डी पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है. इससे असहनीय दर्द झेलना पड़ता है, बल्कि गर्दन और कंधे के आसपास के हिस्से में कुछ रेंगने जैसी अनुभूति भी हो सकती है. सिर झुकाकर मैसेज पढ़ने या टाइपिंग करने के बजाय फोन और टैबलेट की स्क्रीन को आंखों की सीध में लाकर उस पर काम करें. लंबे समय तक फोन के इस्तेमाल के बाद गर्दन को दाएं-बाएं, ऊपर-नीचे घुमाने वाले व्यायाम भी फायदेमंद हैं.

अध्ययन में ये खुलासा हुआ क्या करें, क्या न करें

● 18 महीने तक बच्चों को बिल्कुल भी स्क्रीन के सामने नहीं आना चाहिए. दो साल तक बच्चों का दिमाग पूरी तरह विकसित होता है.

● 2 से 5 साल की आयु के बच्चों के लिए यह एक घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए.

● बड़े बच्चों और किशोरों के लिए, शारीरिक गतिविधि, पर्याप्त नींद, स्कूल के काम के लिए समय, भोजन और परिवार के समय जैसी अन्य गतिविधियों के साथ स्क्रीन समय को संतुलित करना जरूरी है.

● मोबाइल या टीवी देखते समय मुद्रा में बैठना जरूरी है.

● अभिभावक बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय दें.

● बच्चों के साथ खेलने के लिए प्रेरित करें.

150 से ज्यादा बच्चे गुरुग्राम में इलाज के लिए जाते हैं.

मरीज एक माह में नोएडा और ग्रेटर नोएडा में सामने आ रहे हैं.

स्रोत जीटीबी अस्पताल का अध्ययन

दस साल से छोटे बच्चे भी शामिल

बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर संस्थान के पीडियाट्रिक न्यूरो विभाग के डॉ. अभिषेक अग्रवाल बताते हैं, एक महीने में ऐसे 200 से ज्यादा बच्चे इलाज के लिए लाए जा रहे हैं, जिन्हें सर्वाइकल और सिर दर्द की परेशानी हैं. इनमें 10 साल से कम उम्र के भी कई बच्चे हैं.

निकट दृष्टि दोष की समस्या भी बढ़ी

गाजियाबाद. सरकारी अस्पताल एमएमजी में हर महीने आठ से दस केस ऐसे आ रहे हैं, जिनमें बच्चों को गर्दन की दर्द की शिकायतें आ रही हैं. इसके अलावा आठ साल से कम उम्र के बच्चों में निकट दृष्टि दोष के 12 से 15 मामले आ रहे हैं. बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विपिन कुमार उपाध्याय कहते हैं कि अभिभावको ंको सजग होना पड़ेगा.

पांच से पंद्रह साल वालों में परेशानी

गुरुग्राम. गुरुग्राम के सिविल अस्पताल में एक महीने में ऐसे 100 से 150 से ज्यादा बच्चे इलाज के लिए आते हैं, जिन्हें पीठ, सिर दर्द आदि की परेशानी आने आई. मनोचिकित्सकों का कहना है कि 5 से 15 वर्ष तक के बच्चों पर मोबाइल या टीवी का नशा सवार है.

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