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आपकी अपनी प्रकृति भी रहेगी हरी-भरी

कोई भी कदम जो पर्यावरण के लिए बुरा हो, हमारे लिए अच्छा नहीं हो सकता. प्रकृति की बेहतरी के लिए की गई किसी भी कोशिश में हमारी अपनी भलाई है. फिर कुछ बड़ा करना ही जरूरी नहीं है. छोटी-छोटी बातें ही हमें प्रकृति से जोड़ देती हैं. और प्रकृति से जुड़ते ही हम खुद से जुड़ जाते हैं.

पेड़ों से कहें, सुनें

यह सब जानते हैं कि पेड़ ऑक्सीजन देते हैं, कार्बन डाईऑक्साइड सोखते हैं. ग्रीनहाउस गैस का असर कम करते हैं. पेड़ों के बिना हमारा भविष्य हरा-भरा नहीं हो सकता. पर पेड़ों का काम इतना ही नहीं है. जेन हेबिट के संस्थापक लिओ बॉबटा कहते हैं, पेड़ बहुत अच्छे हीलर हैं. सिर से लेकर पैर तक हमारा ध्यान रख सकते हैं. गुस्सा आ रहा है, घुटन महसूस हो रही है, मन बेचैन है, तनाव बढ़ा हुआ है, कुछ सूझ नहीं रहा है तो कुछ देर पेड़ों के पास जाएं. उन्हें देखते रहें, उन्हें प्यार से छुएं, अपनी बात कहकर खुद को हल्का कर लें. पेड़ बहुत अच्छे श्रोता हैं. आपको तुरंत ही शांति मिलने लगेगी. रवींद्रनाथ टैगोर तो यहां तक कहते हैं कि जो यह जानते हुए भी पेड़ लगाता है कि वो उसकी छाया में कभी नहीं बैठ पाएगा, वह जीवन का असली अर्थ समझने लगा है. जीवन में कम से कम एक पेड़ जरूर लगाएं. उसके धूप और पानी का ध्यान रखें. और पेड़ नहीं लगा सकें तो आसपास लगे पेड़-पौधों का ध्यान रखें. -पूनम जैन

कुछ देर वॉकिंग मेडिटेशन

हम रोज चलते हैं. पर, अकसर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने की जल्दबाजी और बेचैनी में चलते रह जाते हैं. कदम कहीं ओर तो मन कहीं ओर ही चल रहा होता है. हर कदम के साथ धरती से हो रहे अपने संवाद को हम सुन ही नहीं पाते. प्रकृति से खुद को जोड़ने के लिए वियतनामी बौद्ध गुरु तिक न्हात हन्न वॉकिंग मेडिटेशन पर जोर देते हैं. उनके अनुसार, ‘ऐसे चलें जैसे हमारा हर कदम धरती को चूम रहा हो. इस सुंदर ग्रह पर अपने होने का अनुभव करें. चलते हुए जो कुछ शरीर में हो रहा है, उसे महसूस करें. प्रकृति के प्रति सम्मान जाहिर करें.

हम हर समय ध्यान मुद्रा में नहीं चल सकते. पर, रोज सुबह खुले में कुछ देर इसका अभ्यास कर सकते हैं. यह बच्चे की तरह चलने की शुरुआत करने जैसा है. आप डगमगाएंगे, रुकेंगे, फिर चलेंगे. धीरे-धीरे चलें. अपना पूरा ध्यान अपने तलवे पर ले आएं. हर सांस के साथ कदम बढ़ाएं. इस तरह चलना पूरी तरह वर्तमान में होना है. तन-मन दोनों एक साथ शांत हो जाते हैं. तनाव कम होता है. ध्यान रखें, हम प्रकृति से अलग नहीं हैं, हम ही प्रकृति हैं.

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