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पवन ऊर्जा से ग्लोबल वार्मिंग में आएगी कमी

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि यदि 2030 तक हर साल 1.5 टेरावाट सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन किया जाए तो इससे सदी के आखिर तक तापमान बढ़ोतरी को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने में मदद मिल सकती है. यह तभी संभव होगा जब सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन की मौजूदा दर में पांच गुना ज्यादा तेजी से इजाफा हो.

‘क्लाइमेट एनालिटिक्स’ की ताजा रिपोर्ट में यह बात कही गई है. यह अध्ययन उन प्रमुख लक्ष्यों को स्पष्ट करता है, जिन्हें 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए दुनिया को हासिल करने की जरूरत है.

इस अध्ययन के नीति प्रमुख क्लेयर फायसन ने कहा कि हर कोई दुनिया भर में अक्षय ऊर्जा से जुड़े लक्ष्य स्थापित करने का आह्वान कर रहा, लेकिन यह सुरक्षित मार्ग पर आधारित होना चाहिए. अगर दुनिया 2030 तक जीवाश्म उपयोग में 40 फीसदी की कटौती के साथ नई पवन ऊर्जा को पांच गुना बढ़ाकर 1.5 टेरावाट प्रति वर्ष कर देगी तो भविष्य में कार्बन डाइऑक्साइड हटाने की मात्रा पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, जो टिकाऊ नहीं हो.

अध्ययन से जुड़े एनर्जी एंड क्लाइमेट एनालिस्ट डॉ. नील ग्रांट कहते हैं कि हमारा तरीका प्रौद्योगिकियों और लागत में सबसे नवीनतम जानकारी पर आधारित है. सौर और पवन ऊर्जा में तेजी से बढ़ोतरी संभव है और ये जीवाश्म ईंधन की कीमत से कम हो सकते हैं. इस विश्लेषण से पता चलता है कि वे इस दशक में अत्यधिक जरूरतों के एक बड़े हिस्से को पूरा कर सकते हैं.

● नवीकरणीय ऊर्जा को तेजी से दुनिया भर में 70 फीसदी तक बढ़ाया जाए

● उत्सर्जन को 2030 तक आधा करने के लिए ग्रीन हाउस गैस में हर साल आठ फीसदी की कटौती हो

● मीथेन उत्सर्जन में 34 प्रतिशत कटौती और ऊर्जा क्षेत्र में इसे 66 फीसदी तक कम करने की जरूरत

05 गुना तक उत्पादन की मौजूदा दर को बढ़ाया जाए

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