भारत में कैदियों को सामान्य आबादी की तुलना में तपेदिक (टीबी) होने का खतरा पांच गुना अधिक है. यह बात लैंसेट लैंसेट पब्लिक हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में सामने आई है. यह शोध बोस्टन विवि, अमेरिका के प्रो. लियोनार्डो मार्टिनेज के निर्देशन में किया गया है.
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने वर्ष 2000 से 2019 के बीच कुल 195 में से 193 देशों का विश्लेषण करते हुए पहली बार जेल में बंद व्यक्तियों में टीबी की दर का पता लगाया.
अध्ययन के अनुसार, भारत की जेलों में प्रति एक लाख व्यक्तियों पर टीबी के 1,076 मामले थे. पिछले साल डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में देश में तपेदिक के मामले एक लाख की आबादी पर 210 थे. शोधकर्ताओं ने पाया कि सामान्य आबादी की तुलना में कैदियों में तपेदिक होने का खतरा करीब 10 गुना अधिक है.
2021 में 1.6 मिलियन लोगों की मौत
प्रो. मार्टिनेज ने कहा, टीबी और भीड़ के बीच यह संबंध बताता है कि पकड़े गए लोगों की संख्या को सीमित करने के प्रयास जेलों में टीबी महामारी से निपटने के लिए एक स्वास्थ्य उपकरण हो सकते हैं. टीबी एक संक्रामक रोग है, जो फेफड़ों को प्रभावित करता है.