नई दिल्ली . राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने पहली बार कई रोगों की सूची जारी की है, जिनकी दवाओं को बिना परामर्श के मेडिकल स्टोरों पर उपलब्ध कराया जा सकता है. इन्हें ओटीसी दवाएं कहा जाता है. हालांकि, सूची दवाओं के नाम शामिल नहीं किए गए हैं.
पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के व्यावसायिक आचरण से संबंधित विनियम में आयोग ने कहा कि ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाओं को कानूनी रूप से डॉक्टर के पर्चे के बिना बेचने की अनुमति है. इसमें बवासीर-रोधी दवाएं, सामयिक एंटीबायोटिक्स, खांसीकी दवा, मुँहासे की दवा और गैर-स्टेरायडल विरोधी दवाएं शामिल हैं. इसके अलावा सूची में एंटीसेप्टिक्स, एनाल्जेसिक, डिकॉन्गेस्टेंट, एस्पिरिन, वैसोडिलेटर्स, एंटासिड, एक्सपेक्टोरेंट, एंटी-फंगल दवाएं, एंटी-हिस्टामाइन, पेट फूलना और धूम्रपान बंद करने वाली दवाएं भी शामिल हैं.
आयोग ने ओटीसी दवाओं को सामान्य बीमारियों के लिए दवाओं के रूप में परिभाषित किया है. उसके मुताबिक वे सभी दवाएं जो प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की सूची में शामिल नहीं हैं, उन्हें ओटीसी दवाएं माना जाता है. वहीं, एक एक आधिकारिक सूत्र ने बताया ति ओटीसी दवाओं को विनियमित करने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं.
जेनरिक दवा न लिखने पर लाइसेंस निलंबित होगा
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा जारी नए नियमों के अनुसार सभी डॉक्टरों को जेनरिक दवाएं लिखनी होंगी. ऐसा न करने पर उन्हें दंडित किया जाएगा. यहां तक कि प्रैक्टिस करने का उनका लाइसेंस भी कुछ अवधि के लिए निलंबित किया जा सकता है. आयोग ने डॉक्टरों से ब्रांडेड जेनरिक दवाएं लिखने से बचने के लिए भी कहा है. आयोग के मुताबिक भारत में दवाओं पर किया जाने वाला खर्च स्वास्थ्य देखभाल पर सार्वजनिक खर्च का एक बड़ा हिस्सा है.
जेनरिक दवाएं 80 प्रतिशत तक सस्ती जेनरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 30 से 80 प्रतिशत तक सस्ती हैं. इसलिए, जेनरिक दवाएं लिखने से स्वास्थ्य देखभाल की लागत में कमी आ सकती है और गुणवत्तापूर्ण देखभाल तक पहुंच में सुधार हो सकता है.