
एक बुजुर्ग को रेलवे की लापरवाही भारी पड़ गई. सहूलियत से सफर के लिए एक महीने पहले उन्होंने टिकट आरक्षित कराई थी. बावजूद इसके उन्हें करीब 1200 किलोमीटर की यात्रा खड़े होकर करनी पड़ी. उपभोक्ता अदालत ने बुजुर्ग को हुई कठिनाई के लिए रेलवे को दोषी मानते हुए मुआवजा देने का आदेश दिया है.
उद्योग सदन स्थित उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की अध्यक्ष मोनिका श्रीवास्तव, सदस्य डॉ राजेन्द्र धर व सदस्य रश्मि बंसल की पीठ ने इस मामले में रेलवे पर जुर्माना लगाया है. इसके तहत ब्याज सहित शिकायतकर्ता को एक लाख 96 हजार रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि कोई भी व्यक्ति सुविधाओं के साथ यात्रा करने के मकसद से ही महीनों पहले रेल का टिकट बुक कराता है, लेकिन यदि यात्रा वाले दिन कन्फर्म टिकट के बावजूद उसे हजारों किलोमीटर का सफर बगैर सीट के तय करना पड़े तो उसकी मुश्किलों का अंदाजा लगाया जा सकता है.
पीठ ने इसे सरासर रेलवे अधिकारियों की सेवा में कोताही माना है. मुआवजा रकम में बुजुर्ग को हुई असुविधा के साथ-साथ मुकदमा खर्च भी शामिल है. मामले में सुनवाई के दौरान रेलवे की ओर से तर्क दिया गया कि बुजुर्ग ने 3 जनवरी 2008 को बिहार के दरभंगा से दिल्ली आने के लिए स्लीपर क्लास की एक टिकट बुक कराई थी.
बुजुर्ग को यह यात्रा 19 फरवरी 2008 को करनी थी. रेलवे ने इस बीच बुजुर्ग की सीट का अपग्रेडेशन कर उन्हें एसी कोच में एक सीट दी थी. हालांकि, रेलवे पीठ के समक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि उन्होंने सीट अपग्रेडेशन की सूचना बुजुर्ग को दी थी.
बुजुर्ग ने सुनाई व्यथा बुजुर्ग ने पीठ को दी शिकायत में बताया कि टिकट बुक कराते समय उन्हें कोच एस 4 में सीट नम्बर 69 आवंटित की गई थी. 19 फरवरी 2008 को वह ट्रेन के समय पर दरभंगा स्टेशन पहुंचे और कोच एस 4 में चढ़ गए. वहां पहुंचकर उन्होंने देखा की उनकी सीट पर कोई और व्यक्ति है. इस पर उन्होंने कोच के टीटीई से संपर्क किया. टीटीई ने बताया कि उनकी सीट का अपग्रेडेशन कर दिया गया है. वह बी 1 कोच की सीट नम्बर 33 में चले जाएं. जब वह छपरा स्टेशन पर बी 1 कोच में पहुंचे तो उन्होंने पाया कि यह सीट टीटीई ने किसी और व्यक्ति को दे दी है. इस पर उनका टीटीई से विवाद हुआ.
रेलवे का पीठ के समक्ष तर्क था कि यात्री समय से सीट पर नहीं पहुंचे, इसलिए दूसरे यात्री का किराया बढ़ाकर यह सीट उन्हें दे दी गई थी.