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अखिलेश ने पीडीए से जीता मुस्लिमों-दलितों का विश्वास

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने अपने दम पर समाजवादी पार्टी को जहां नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया, वहीं कांग्रेस के साथ गठबंधन को भी कामयाबी की राह पर ला दिया. ‘दो लड़कों की जोड़ी’ यानी अखिलेश व राहुल गांधी ने पीडीए की बिसात पर समीकरण बिछा कर मुस्लिमों व दलितों का भी विश्वास हासिल कर लिया तो इसके साथ ही उसके लिए कामयाबी की राह भी खुलती गई.

समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर देते हुए बड़ी ताकत बन कर उभरी है जबकि इंडिया गठबंधन ने यूपी में एनडीए को पीछे छोड़ दिया है. 2019 में महज पांच सीट पर सिमटने वाली सपा ने भाजपा को पछाड़ दिया है. सपा ने 2004 वाला प्रदर्शन फिर एक बार दोहराकर भाजपा को सकते में डाल दिया है.

गत विधानसभा चुनाव में साथ रहे स्वामी प्रसाद मौर्या, जयंत चौधरी, ओम प्रकाश राजभर, पल्लवी पटेल, जैसे सहयोगी नेताओं ने सपा का एक एक कर साथ छोड़ दिया. जनवादी पार्टी व महान दल ने सपा को आंखे दिखानी शुरू कर दीं. लेकिन अखिलेश यादव ने किसी की मान मनौव्वल नहीं की.

कांग्रेस को 17 सीटें देकर गठबंधन बचाया

यूपी में इंडिया गठबंधन के तहत सपा कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर खासी खींचतान रही पर अंतत अखिलेश कांग्रेस को 17 सीटें दीं. यह निर्णय दोनों के हक में अच्छा गया. कांग्रेस व सपा के साथ आने से दलित व मुस्लिमों में भी वोटिंग को लेकर दुविधा दूर हुई और उन्हें विकल्प मिल गया.

पीडीए की बिसात बिछाई

अखिलेश ने पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए की बिसात बिछाई. केवल पांच यादव को प्रत्याशी बनाया और ध्रुवीकरण रोकने को केवल चार मुस्लिमों को टिकट दिए. गैर यादव ओबीसी को सर्वाधक महत्व दिया. सामान्य सीट फैजाबाद पर दलित अवधेश प्रसाद को उतारना सही निर्णय साबित हुआ. अखिलेश ने ‘नहीं चाहिए भाजपा’ का नारा देकर युवाओं की नाराजगी को आवाज दी.

युवाओं को भा गए सवाल

अखिलेश ने पहले नारा दिया नहीं चाहिए भाजपा. उसके बाद पीडीए का अभियान चलाया. उनकी सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ में बड़ी तादाद युवाओं की थी. अखिलेश ने युवाओं को छूने वाले सवाल उठाए. उन्होंने घोषणा पत्र में फ्री-आटा के साथ फ्री-डाटा की बात कही.

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने अपने दम पर समाजवादी पार्टी को जहां नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया, वहीं कांग्रेस के साथ गठबंधन को भी कामयाबी की राह पर ला दिया. ‘दो लड़कों की जोड़ी’ यानी अखिलेश व राहुल गांधी ने पीडीए की बिसात पर समीकरण बिछा कर मुस्लिमों व दलितों का भी विश्वास हासिल कर लिया तो इसके साथ ही उसके लिए कामयाबी की राह भी खुलती गई.

समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर देते हुए बड़ी ताकत बन कर उभरी है जबकि इंडिया गठबंधन ने यूपी में एनडीए को पीछे छोड़ दिया है. 2019 में महज पांच सीट पर सिमटने वाली सपा ने भाजपा को पछाड़ दिया है. सपा ने 2004 वाला प्रदर्शन फिर एक बार दोहराकर भाजपा को सकते में डाल दिया है.

गत विधानसभा चुनाव में साथ रहे स्वामी प्रसाद मौर्या, जयंत चौधरी, ओम प्रकाश राजभर, पल्लवी पटेल, जैसे सहयोगी नेताओं ने सपा का एक एक कर साथ छोड़ दिया. जनवादी पार्टी व महान दल ने सपा को आंखे दिखानी शुरू कर दीं. लेकिन अखिलेश यादव ने किसी की मान मनौव्वल नहीं की.

कांग्रेस को 17 सीटें देकर गठबंधन बचाया

यूपी में इंडिया गठबंधन के तहत सपा कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर खासी खींचतान रही पर अंतत अखिलेश कांग्रेस को 17 सीटें दीं. यह निर्णय दोनों के हक में अच्छा गया. कांग्रेस व सपा के साथ आने से दलित व मुस्लिमों में भी वोटिंग को लेकर दुविधा दूर हुई और उन्हें विकल्प मिल गया.

पीडीए की बिसात बिछाई

अखिलेश ने पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए की बिसात बिछाई. केवल पांच यादव को प्रत्याशी बनाया और ध्रुवीकरण रोकने को केवल चार मुस्लिमों को टिकट दिए. गैर यादव ओबीसी को सर्वाधक महत्व दिया. सामान्य सीट फैजाबाद पर दलित अवधेश प्रसाद को उतारना सही निर्णय साबित हुआ. अखिलेश ने ‘नहीं चाहिए भाजपा’ का नारा देकर युवाओं की नाराजगी को आवाज दी.

युवाओं को भा गए सवाल

अखिलेश ने पहले नारा दिया नहीं चाहिए भाजपा. उसके बाद पीडीए का अभियान चलाया. उनकी सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ में बड़ी तादाद युवाओं की थी. अखिलेश ने युवाओं को छूने वाले सवाल उठाए. उन्होंने घोषणा पत्र में फ्री-आटा के साथ फ्री-डाटा की बात कही.

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