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देवशयनी एकादशी को श्रीहरि पाताल लोक जाते हैं

पद्म पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानी देवशयनी एकादशी (17 जुलाई) के दिन भगवान विष्णु पाताल लोक जाते हैं और देवउठनी एकादशी तक वहीं निवास करते हैं. इसे हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं. भगवान विष्णु के इन चार माह तक पाताल गमन के पीछे एक घटना है. विष्णु ने जब वामन रूप धारण कर असुर राज बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी, तब बलि ने उन्हें अपना सर्वस्व दान कर दिया था. और भगवान ने उन्हें पाताल लोक में रहने का आदेश दिया था. भगवान बलि की दानशीलता और वचनबद्धता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा. राजा बलि ने कहा, ‘प्रभु यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे साथ पाताल लोक में निवास करें.’ विष्णु बलि के आग्रह को मना नहीं कर पाए क्योंकि वे वचनबद्ध थे. वे बलि के साथ पाताल चले गए. इधर देवि लक्ष्मी विष्णु के पाताल लोक में जाने पर परेशान हो गईं. उन्होंने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त करवाया. इस पर भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी (देव प्रबोधनी एकादशी) तक पाताल में निवास करेंगे. विष्णु के पाताल गमन के इस समय को ही चातुर्मास कहते हैं.

देवशयनी एकादशी से जुड़ी एक अन्य कथा भी है. भगवान विष्णु का शंखचूड़ नाम के एक असुर से लंबे समय तक भयंकर युद्ध चला. अंत में भगवान विजयी हुए. लेकिन इस युद्ध में वे काफी थक गए थे. देवताओं ने आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा कर उनसे निवेदन किया कि आप कुछ समय विश्राम करें और सृष्टि संचालन का भार भगवान शंकर को सौंप दें. देवताओं की विनती पर विष्णु देवलोक के चार प्रहर की अवधि के लिए शयन करने चले गए, जो पृथ्वी लोक के चार माह के बराबर होते हैं. तब से आषाढ़ शुक्ल की एकादशी हरिशयनी एकादशी के नाम से जानी जाती है.

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