नई दिल्ली . गंगा और यमुना नदियों में पूजा-पाठ की सामग्री फेंकने से रोकने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने अतिरिक्त कदम उठाने का सुझाव दिया है, जिसमें समारोह, अनुष्ठान और मूर्ति विसर्जन के लिए समर्पित स्थान विकसित करना शामिल है.
एनजीटी ने गढ़मुक्तेश्वर, कानपुर, बिठूर, प्रयागराज, वाराणसी, आगरा और मथुरा के जिलाधिकारियों को उन स्थानों को चिह्नित करने और उन पर निगरानी रखने का भी निर्देश दिया, जहां ऐसी वस्तुएं फेंकने या विसर्जित करने की संभावना है. एनजीटी एक मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने यमुना और गंगा नदियों में पॉलीथीन की थैलियों में पैक किए गए फूल और मालाओं को फेंकने के संबंध में एक समाचार पत्र की रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लिया था.
हाल में एक आदेश में NGT अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि अधिकरण के पूर्व निर्देशों और समिति के विभिन्न निर्णयों के बावजूद पूजा सामग्री एवं मालाएं फेंकने के कारण प्रदूषण की समस्या बनी हुई है. पीठ ने कहा कि यमुना और गंगा नदियों में प्रदूषण को रोकने के लिए एनजीटी के पहले के आदेशों के उचित क्रियान्वयन के लिए कुछ अतिरिक्त कदम उठाए जा सकते हैं. इनमें पूजा-पाठ की सामग्री नहीं फेंकने का उल्लेख करने वाले ह्यडिस्प्ले बोर्डह्ण लगाना और निर्देश का उल्लंघन करने पर जुर्माना लगाने के बारे में जानकारी देना शामिल है.
विशेष घाट विकसित करना : स्कूल स्तर पर नदियों में इन सामग्रियों को फेंके जाने के प्रभाव के बारे में व्यापक जागरूकता बढ़ानी चाहिए तथा नदी के डूब क्षेत्र के संरक्षण के लिए नदी के किनारे से 100 मीटर दूर तथा तट पर धार्मिक अनुष्ठानों को प्रतिबंधित करने का प्रयास होना चाहिए. एनजीटी ने कहा अनुष्ठान व मूर्तियों व पूजा पाठ की सामग्री के विसर्जन के लिए विशेष घाट विकसित करने को लेकर उपयुक्त स्थान की पहचान कर सकते हैं.
मूर्ति विसर्जन के लिए अलग योजना
एनजीटी ने कहा कि प्रत्येक घाट पर मूर्ति विसर्जन, फूल, नारियल और अन्य सामग्री के संग्रह और प्रसंस्करण के संबंध में एक अलग योजना बनाई जा सकती है. साथ ही पुलों, नालों और अन्य स्थानों से नदियों में पूजा पाठ की सामग्री के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निपटान को नियंत्रित और रोका जा सकता है.