
नौतपा की शुरुआत 25 मई से हो चुकी है जो 2 जून को समाप्त हो जाएगा। पिछले पिछले छह दिनों से दिल्ली में मौसम का जो हाल है उससे नौतपा का खौफ हवा हवाई हो गया है। अब नौतपा के बीतने में तीन दिन और शेष रह गए हैं और 31 मई को दोबारा से दिल्ली में आंधी-चारिश के आसार बन रहे हैं। ऐसे में यह कहना बिल्कुल मुनासीब होगा कि इस बार का नौतपा बिना तपाए ही बीत गया। कहा जाता है कि नौतपा के नौ दिनों में सूरज की गर्मी असहनीय हो जाती है। दरअसल नौतपा के 9 दिन में धरती पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ती है लिहाजा इन दिनों भयंकर गर्मी पड़ती है। यानी सूरज आग उगलने लगता है। लेकिन लोग इस ममैौसम को इस संतोष के साथ झेलते हैं कि इससे बरसात के मौसम में अच्छी बारिश होगी। ऐसे में अब बरसात के मौसम को लेकर आशंका गहराना स्वाभाविक है।
दिल्ली में नौतपा ने दी मिलीजुली प्रतिक्रिया
नौतप में चारिश का दिल्ली के मॉनसून पर मिश्रित प्रभाव रहा है। 2024 और 2021 में नौतपा की बारिश ने मॉनसून को मजबूत किया, जिससे रेकॉर्ड तोड़ बारिश हुई। वहीं, 2023 और 2022 में बारिश का प्रभाव सीमित रहा, और मॉनसून सामान्य या उससे कम रहा। नौतपा में बारिश मॉनसून ट्रफ और पश्चिमी विक्षोभ जैसे कारकों को प्रभावित करती है, जिससे मैसम का मिजाज बदलता है। दिल्ली में जलभराव और ट्रैफिक जैसी समस्याएं भी इन वर्षों में आम रहीं। देखा गया है कि नौतपा की बारिश मॉनसून की तीव्रता को बढ़ा देती है, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन और स्थानीय मौसमी सिस्टम पर भी निर्भर करता है।
नौतपा में बारिश होने का यह होता है परिणाम
नौतपा में जब भयंकर गर्मी पड़ती है तब समुद्र के पानी का तेजी से वाष्पीकरण होता है और उससे घने बादल बनते हैं। घने बादल होने से अच्छी बारिश होने के आसार बनते हैं। लेकिन वहीं अगर नौतपा के दिनों में बारिश हो जाए तो वाष्पीकरण की प्रकिया रुक जाती है और बादल कम पानी बनाते हैं, जिससे अच्छी बारिश नहीं हो पाती है। ज्योतिषी संजीत कुमार मिश्रा बताते हैं कि नैतप के दौरान सूर्य की रोहिणी नक्षत्र में स्थिति मॉनसून के लिए अहम होती है। उनके अनुसार, नौतपा में बारिश होने पर मॉनसून कमजोर हो सकता है, क्योंकि यह गर्मी के चरम को बाधित करता है। आचार्य वराहमिहिर मानते हैं कि नौतपा में बारिश अकाल या मॉनसून में कमी का संकेत हो सकती है। नौतपा के पहले दिन बारिश होने पर अकाल की आशंका रहती है, जबकि मध्य में बरिश होने पर मॉनसून में अंतराल बढ़ सकता है। कृषि और मौसम परंपराओं पर शोध करने वाले डॉ. रघुवीर सिंह कहते हैं कि नौतपा में बारिश भारतीय प्रायद्वीप को पर्याप्त गर्म होने से रोकती है, जिससे मॉनसून की नमी वाली हवाएं उत्तर भारत तक कम प्रभावी ढंग से पहुंचती हैं।
नौतपा में बारिश किसानों को पड़ती है महंगी !
खेती के लिए नौतपा की भीषण गमों फायदेमंद होती है। इस दौरान सूरज जितना प्रचंड आग बरसाएगा और लू चलेगी, बारिश उतनी ही ज्यादा अच्छा होगी। इससे किसानों के गर्मी में सूखे खेतों को अच्छी-खासी नमी मिलेग। जैसा कि हमने ऊपर कहावत में देखा इस भीषण गर्मी के कारण फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीट खत्म होंगे तो जहरीले जीव-जंतुओं से भी निजात मिलेगी। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि यही समय खेतों में रह कर नुकसान पहुंचाने वाले चूहों, कीटों और जहरीले जीवों के प्रजनन का होता है। भीषण गर्मी में अंडे खुद ही नष्ट हो जाते हैं और किसानों को फसल बचाने के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता। अब अगर नौतपा के दौरान अगर गर्मी न पड़े तो आगे बारिश प्रभावित हो सकती है। इस दौरान अगर बारिश भी हो जाती है तो आगे बारिश के मौसम में पानी कम बरसने की आशका पैदा हो जाती है। फिर खेतों से कीट-पतंगे, जहरीले जीव और चूहों आदि का खात्मा भी नहीं होगा।
इस तरह की हो सकती हैं परेशानियां
नौतपा के पहले 2 दिन अगर लू ना चले तो चूहे बहुत हो जाएंगे, जिससे कई तरह की बीमारियां भी शुरू हो जाती हैं। नौतपा के तीसरे और चौथे दिन लू ना चले तो टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे, जो खेतों को नष्ट कर देंगे और पूरी फसल भी बर्बाद कर सकते हैं। नौतपा के पांचवें और छठवें दिन अगर धरती सही से ना तपे तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे, जिसकी वजह से बच्चे, बूढे समेत सभी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और कई बीमारियां जन्म लेंगी। वहीं नौतपा के सातवें दिन लू ना चले तो सांप और बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। नौतपा के अंतिम दिन दिन अगर धरती सही से ना तपे तो आंधियां इतनी आएंगी कि फसलों के नष्ट होने का खतरा बना रहेगा।