जंगल सफारी का लुत्फ उठाना हो, हरियाली को निहारते हुए नौका विहार करना हो या जंगली हाथियों को ट्रेनिंग लेते देखना हो… केरल के पतनमथिट्टा के मध्य बसे कोनी में पर्यटकों के लिए एडवेंचर के तमाम साधन हैं. कोट्टायम से 75 किलोमीटर दूर स्थित कोनी से रूबरू करा रहे हैं .
अपनी यात्राओं में आमतौर पर मैं ऐसी जगह चुनता हूं, जो प्रसिद्ध भले न हो, पर वहां जाने पर अपने अनुभव संसार को समृद्ध करने का अवसर मिले. केरल स्थित कोनी एक ऐसी ही जगह है,जहां मुझे हाथियों को प्रशिक्षित करने वाले स्थान को देखना था. जंगली हाथी, जो अपना झुंड छोड़ देते हैं या ताकत की लड़ाई में पिछड़ जाने पर अपने झुंड से अलग कर दिए जाते हैं, उनसे आम नागरिकों की मुठभेड़ स्वाभाविक हो जाती है. ऐसे में होने वाले नुकसानों से बचने के लिए उन हाथियों को मानव समाज के अनुकूल व्यवहार करने का प्रशिक्षण दिया जाता है. मेरी इस यात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण यही था. मैं वहां पहुंचा, तो जंगल व पहाड़ से घिरे उस स्थान का बारिश के दौरान दृश्य ही अलग था. जगह-जगह से निकलते झरनों के बीच से जाती घुमावदार सड़कें आकर्षक लग रही थीं. मैंने कई बार जंगल में जानवरों को अपने स्वाभाविक रूप में देखा, इसके बावजूद जंगली जीवों को उनके असल आवास में देखने का मोह नहीं छूटता. हाथियों को प्रशिक्षित किया जाने वाला स्थान कोनी में भी जंगल के सबसे बड़े जीवों की एक नयी दुनिया को समझने का अवसर मिला. वहां का ‘आनाकोड’ अपने आकार के कारण सबसे पहले दिख जाता है. यह लकड़ी के मजबूत लट्ठों से बनी पिंजरेनुमा आकृति होती है, जिसमें प्रशिक्षु हाथियों को रखा जाता है. आनाकोड बहुत मजबूत था, वरना उसमें बंद हाथी उसे ध्वस्त करने जितनी ताकत लगातार लगा रहा था. दरअसल, केरल में हाथी बहुत होते हैं और स्थानीय लोगों से उनका संघर्ष पारंपरिक है, इसलिए पीढ़ियों से लोगों ने अपने को सुरक्षित रखने के तौर तरीके विकसित कर लिए हैं. अनाकोड बनाना उसी में से एक है और हाथियों को प्रशिक्षित करना भी. पता चला कि उस जगह से प्रशिक्षित हुए हाथी केरल के विश्व प्रसिद्ध त्रिशूर पुरम में भी भाग ले चुके हैं. आमतौर से हाथियों को पिंजरे में रखना और उन्हें सिखाना एक क्रूर प्रक्रिया लगती है, लेकिन केरल में जंगली हाथी व मनुष्यों के बीच का संबंध जितना नाजुक है, उसे देखते हुए यह एक जरूरी प्रयास लगता है. वहां जंगल में चोट खाए व भटक कर बाहर आए छोटी उम्र के हाथियों को उनके इलाज के बाद सकुशल जंगल में छोड़ने की भी व्यवस्था है. कोनी के आसपास जंगल हैं, लिहाजा उससे जुड़ी गतिविधियां भी आकर्षक हैं. कोनी से गवि की यात्रा वन विभाग करवाता है, जो बहुत खास है. उस रास्ते पर आप बाइक ट्रिप कर सकते हैं या स्थानीय लोगों के साथ ट्रेकिंग भी. जंगल घूमते हुए रास्ते में जंगली सूअर, शाही, गोह, हिरण आदि भी दिख जाते हैं. यह पूरा रास्ता पक्षियों के कलरव से भरा रहता है.
कोनी की कल्लार नदी में नौका विहार करने का आनंद भी कुछ अलग था. पहाड़ियों के बीचो-बीच बहती नदी कहीं वेगवती, तो कहीं ठहराव के साथ बहती चलती है. ऐसे में नाव से घूमते जंगल के दृश्य को देखने का रोमांच ही कुछ अलग है. मुझे बीच नदी में गोल नाव पर गोल-गोल घूमना बहुत रोमांचक लगा, क्याेंकि पानी, जंगल व पहाड़ सब एकाकार हो रहे थे. मैंने वहां अपनी रात एक ट्री हाउस में बिताई, जिसे स्थानीय भाषा में ‘माड़म’ कहते हैं. वहां की सुबह अनूठी थी. चारों ओर से आता पक्षियों का कलरव और पेड़ों के झुरमुट से झांकती सूरज की उन किरणों पर सारे सुख न्योछावर. कोनी के आसपास कई ऐसी शानदार जगहें हैं, जहां आप सड़क मार्ग से घूमने जा सकते हैं, जैसे शबरीमला मंदिर. यहां भी आप घूमने जा सकते हैं.
और हां, कोनी की यात्रा में स्थानीय भोजन का स्वाद न लिया, तो आपको यात्रा का पूर्ण आनंद नहीं आएगा. वहां कई प्रकार के ‘अड़ा’बनते हैं और सबसे बेहतरीन स्वाद वाला अड़ा होता है तेजपत्ते के पत्ते में पकाया गया चावल और कटहल का अड़ा. इसे चखिएगा जरूर. सच कहें तो जीवन भर सहेजे जाने वाले अनुभवों से भरपूर होती है ऐसी जगहें, इसलिए जब भी मौका मिले केरल के कोनी जरूर जाएं.
कैसे जाएं, कहां रुकें
पतनमथिट्टा के नजदीक चेंगन्नूर और तिरुवल्ला दो रेलवे स्टेशन हैं, जहां से आप स्थानीय वाहन से कोनी पहुंच सकते हैं. त्रिवेन्द्रम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा यहां से लगभग 97 किलोमीटर दूर है. यहां से आप लोकल ट्रेन लेकर आगे की यात्रा कर सकते हैं. घूमने के लिए साल का कोई भी समय केरल की यात्रा के लिए मुफीद है, पर अगस्त से मार्च तक का समय ज्यादा बेहतर है. जहां तक बात यहां ठहरने की है, तो पूरे केरल में आपको किसी भी जगह पर होटल और रिसोर्ट की सुविधा मिल जाएगी. यदि आप हाउसबोट में रहना चाहते हैं, तो यह भी एक अलग अनुभव देगा.