मुंबई . भारतीयों ने कोरोना महामारी के बाद अपनी बचत करने का तरीका बदल डाला है. अब लोग पहले की तरह वित्तीय बचत नहीं कर रहे बल्कि अपने पैसे को भौतिक बचत जैसे आवास, वाहन आदि में लगा रहे हैं. एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट का कहना है कि यह बदलाव ब्याज दरों में तेज गिरावट के बाद देखने में आया है.
एसबीआई रिसर्च की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत करीब 55 प्रतिशत गिरकर जीडीपी के 5.1 प्रतिशत पर आ गई, जबकि इन परिवारों पर कर्ज का बोझ दोगुना से भी अधिक होकर 15.6 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया. रिपोर्ट के मुताबिक, घरेलू बचत से निकासी का एक बड़ा हिस्सा भौतिक संपत्तियों में चला गया है और 2022-23 में इनपर कर्ज भी 8.2 लाख करोड़ रुपये बढ़ गया. इनमें से 7.1 लाख करोड़ आवास एवं खुदरा कर्ज के रूप में बैंकों से लिया गया है.
एसबीआई के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि महामारी के बाद से परिवारों की वित्तीय देनदारियां 8.2 लाख करोड़ रुपये बढ़ गईं, जो बचत में हुई 6.7 लाख करोड़ की वृद्धि से अधिक है.
बीमा, पेंशन कोष में बढ़ोतरी हुई
इस अवधि में परिवारों की संपत्ति के स्तर पर बीमा और भविष्य निधि एवं पेंशन कोष में 4.1 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई. वहीं परिवारों की देनदारी के स्तर पर हुई 8.2 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि में 7.1 लाख करोड़ रुपये वाणिज्यिक बैंकों से घरेलू उधारी का नतीजा है. पिछले दो साल में परिवारों को दिए गए खुदरा ऋण का 55 प्रतिशत आवास, शिक्षा और वाहन पर खर्च किया गया है. इससे पिछले दो वर्षों में घरेलू वित्तीय बचत का स्वरूप घरेलू भौतिक बचत में बदल गया है.