राष्ट्रीयट्रेंडिंग

सर्वे से सुलझेगा श्रीकृष्ण जन्मभूमि का 350 साल पुराना विवाद

मथुरा . हाईकोर्ट से शाही ईदगाह के कोर्ट कमिश्नर के सर्वे का आदेश के बाद ये उम्मीद बंधी है कि इससे वास्तविकता सामने आ जाएगी. पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना का है. इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनी है. वहीं, 2.37 एकड़ हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. हिंदू पक्ष का दावा है ये पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि की है.

विवाद की शुरुआत लगभग 350 साल पहले हुई थी, जब दिल्ली पर औरंगजेब का शासन था. 1670 में औरंगजेब ने मथुरा की श्रीकृष्ण जन्म स्थान को तोड़ने का आदेश जारी किया था. इसके एक साल पहले काशी के मंदिर को तोड़ा गया था. इस आदेश पर मंदिर को धराशायी कर दिया गया. इसके बाद इसी जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई. औरंगजेब के आदेश और मंदिर तोड़े जाने की पुष्टि इतालवी यात्री निकोलस मनूची के लेख से भी होती है. मनूची मुगल दरबार में आया था . यात्रा के बारे में उसने अपनी किताब में जानकारी दी है. मुगलों के इतिहास का जिक्र करते हुए उसने यह भी बताया कि रमजान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को नष्ट किया गया.

मराठों ने वापस ली जमीन मस्जिद बनने के बाद करीब 100 साल तक यहां हिंदुओं का प्रवेश वर्जित रहा. 1770 के मुगल-मराठा युद्ध में मराठे जीत गए तो उन्होंने यहां फिर मंदिर बनवाया. उस समय तक यह केशवदेव मंदिर हुआ करता था. मराठे मंदिर बनवाकर चले गए. वे इसे नजूल भूमि (गैर कृषि भूमि) मानते थे. 19वीं सदी में अंग्रेज मथुरा पहुंचे और 1815 में इस जमीन को नीलाम कर दिया. अंग्रेज भी इसे नजूल भूमि मानते रहे. काशी के राजा ने जमीन को खरीद लिया. राजा की इच्छा यहां मंदिर बनवाने की थी लेकिन मंदिर बन न सका. करीब 100 साल तक जगह ऐसे ही खाली रही और इसे लेकर विवाद शुरू हो गया.

उपासना के दो स्थल दीवार से हुए अलग

समझौते में यह भी तय हुआ था कि मस्जिद में मंदिर की ओर कोई खिड़की, दरवाजा या खुला नाला नहीं होगा. यानी यहां उपासना के दो स्थल एक दीवार से अलग होंगे. हाल में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि 1968 का यह समझौता धोखाधड़ी से किया गया था और कानूनी रूप से वैध नहीं है. उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में देवता के अधिकारों को समझौते से खत्म नहीं किया जा सकता, क्योंकि देवता कार्यवाही का हिस्सा नहीं थे.

जन्मभूमि ट्रस्ट के पास ऐसे आई थी जमीन

1944 में महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ जब ये जमीन मशहूर उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने खरीद ली. सौदा राजा पटनीमल के वारिसों से हुआ. इस दौरान देश आजाद हुआ और 1951 से श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना जिसे ये जमीन दे दी गई. ट्रस्ट ने चंदे के पैसे से 1953 में जमीन पर मंदिर बनवाना शुरू किया, जो 1958 तक चलता रहा. 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान बना. इसी संस्था ने 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता किया.

1968 के समझौते ने बनाई बड़ी दरार

जुगल किशोर बिड़ला ने 1946 में जमीन की देखरेख के लिए श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया था. 1967 में उनकी मौत हो गई. कोर्ट के रिकॉर्ड के अनुसार, 1968 से पहले 13.37 एकड़ भूमि पर कई लोग बसे थे. यह विकसित नहीं था. 1968 में ट्रस्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद पक्ष से एक समझौता कर लिया. इसके तहत मस्जिद का पूरा प्रबंधन सौंप दिया गया. परिसर में रह रहे मुस्लिमों को खाली करने को कहा गया.

हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जा रहा है. उसके बारे में बाद में निर्णय लिया जाएगा. हाईकोर्ट की वेबसाइट पर देर से आदेश अपलोड हुआ था. आदेश को पूरा पढ़ने के बाद ही उस पर कोई प्रक्रिया दी जा सकती है. आदेश का अवलोकन करने के बाद जो विधिक प्रक्रिया संभव होगी उसे अमल में लाया जाएगा. -तनवीर अहमद, सचिव, शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button