गंभीर बीमारियों के इलाज या आकस्मिक खर्चों की भरपाई के लिए लोग स्वास्थ्य बीमा लेते हैं लेकिन कई बार कंपनियां क्लेम को खारिज कर देती हैं. इसका कारण होता है कि बहुत से लोग बीमा खरीदते समय पहले से मौजूद अपनी बीमारी का खुलासा नहीं करते हैं. इसके लिए प्रस्ताव (प्रपोजल) फॉर्म भरना जरूरी होता है.
यदि बीमाधारक इससे चूक जाता है तो उसका क्लेम बीमा कंपनी खारिज कर सकती है. इसलिए पॉलिसी लेते समय इस फॉर्म को खुद अनिवार्य रूप से भरना चाहिए.
क्या है प्रपोजल फॉर्म
जब भी कोई व्यक्ति स्वास्थ्य बीमा खरीदता है तो कंपनी प्रस्ताव भरवाती है. इसमें आवेदक की जीवनशैली से जुड़े तमाम तरह के सवाल पूछे जाते हैं. साथ ही ऐसी कोई बीमारी जिससे आवेदक पीड़ित है, उसका पूरा विवरण मांगा जाता है. नियमों के तहत स्वास्थ्य बीमा खरीदने से 36 महीने पहले तक की बीमारियां और चोटें पीईडी की श्रेणी में आएंगी. हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, थायरायड और डायबिटीज जैसी बीमारियां पीईडी में शुमार होती हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य बीमा खरीदते समय पहले से मौजूद बीमारियां अहम मुद्दा है. यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य बीमा लेते समय पुरानी बीमारी का खुलासा प्रपोजल फॉर्म में करता है तो कंपनी प्रीमियम की राशि बढ़ा सकती है, कोई शर्त जोड़ सकती है या फिर आवेदन को ही खारिज कर सकती है. अगर आवेदक बीमारी को छुपाकर बीमा ले लेता है और बाद में इसका खुलासा होता है तो वह दावा खारिज कर सकती है. यही नहीं पॉलिसी भी बंद कर सकती है.
बीमा नियामक ने घटाई थी प्रतीक्षा अवधि
बीमा विनियामक इरडा ने हाल ही में स्वास्थ्य बीमा से जुड़े नियमों में अहम बदलाव किए हैं. इसके तहत पहले से मौजूद बीमारी यानी पीईडी को कवर करने की समय अवधि को घटा दिया गया है. अभी तक पॉलिसी के लिए आवेदन करने से चार साल पहले तक की बीमारी को पहले से मौजूद बीमारी माना जाता था. अब इस अवधि को घटाकर तीन साल कर दिया गया है. यानी अब पॉलिसी खरीदने से तीन साल से पहले तक की बीमारी पीईडी की श्रेणी में आएंगी लेकिन इसका फायदा तभी मिलेगा जब बीमाधारक ने इंश्योरेंस लेते वक्त प्रपोजल फॉर्म खुद भरा हो.